क्वीन मैरी की संविदा नर्स को नहीं मिला इलाज, बेहोश

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लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय स्थित क्वीन मैरी हॉस्पिटल के नियोनेटल यूनिट में तैनात संविदा नर्स मंगलवार को सुबह ड्यूटी करते हुए बेहोश हो गई। साथी नर्स ने पहले तो बेहोश नर्स को होश में लाने की कोशिश की। बड़ी मुश्किल से होश में आने पर उसे लेकर होल्डिंग एरिया पहुंचे। यहां फर्श पर मरीज को लिटा दिया। वहां पर गंदगी का आलम यह था कि नाली में भी मक्खी और मच्छर कब्जा जमाए हुए थे। आरोप है कि 2 घंटे के बाद डॉक्टर ने कोविड जांच कराने का परामर्श दिया। जांच कराने से पहले कोरोना वार्ड के बाहर नर्स फिर बेहोश हो गई। फिर साथियों ने महाभरती ना करा कर उसे निकट प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया।

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बताते चलें कि क्वीनमेरी की एन आईसी यूनिट में तैनात नर्स रूपा मिश्र को पेट में हल्का दर्द हुआ। उसके बाद दर्द इतना तेज हुआ कि सुबह नौ बजे वह बेहोश होकर गिर पड़ी ।साथी मित्रों ने उसे लेकर ट्रामा सेंटर की होल्डिंग एरिया पहुंचे। आरोप है कि कई बार गुहार लगाने पर भी नर्स को घंटों इलाज नहीं मिला। वह पेट दर्द से कराह रही थी। उसकी साथी रोने लगी। उसका कहना था कि कर्मचारी होने के बावजूद उसकी मदद होल्डिंग एरिया में किसी ने नहीं की।

साथियों की फरियाद के बाद डॉक्टरों ने कोरोना जांच के बाद इलाज करने के निर्देश दिए। साथी कर्मचारियों ने जांच शुल्क माफ करने का अनुरोध किया। आरोप है कि डॉक्टरों ने बिना शुल्क जमा किए जांच करने से इनकार कर दिया। किसी तरह संविदा कर्मचारियों ने आपस में एकत्र करके 1500 रुपये जुटाये। न्यूरोलॉजी वार्ड के सामने कोरोना वार्ड में संदिग्ध मरीजों की जांच होती है। उदासीनता के चलतेे यहां नर्स की घंटों जांच नहीं हो सकी। संविदा कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रितेश मल का कहना है कि बदइंतजामी से नर्स फिर पेट दर्द के कारण बेहोश हो गई थी। लगातार बढ़ती जा रही लापरवाही से सब ने मिलकर उसे प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां इलाज पर काफी पैसे खर्च हो गए।

तबीयत में कुछ सुधार हुआ। अब दोबारा ट्रॉमा सेंटर लाया गया है। जहां इलाज के लिए जद्दोजहद झेलनी पड़ रही है।
रितेश मल का आरोप है कि कर्मचारियों को इलाज मिलने में दिक्कत है आ रही है तो आम मरीजों का क्या हाल होगा। उन्होंने कहा कि संविदा कर्मचारियों की कोरोना की मुफ्त जांच होनी चाहिए। क्योंकि सभी को 15 दिन पर जांच करानी होगी। ऐसे में 3000 रुपये महीने खर्च होंगे। आठ से 10 हजार पाने वाले महंगी जांच करा पाने में सक्षम नहीं है। इस बारे में केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ सुधीर का कहना है कि अभी तक इलाज न मिलने की शिकायत नहीं मिली है। रोगियों और कर्मियों का हित विश्वविद्यालय के लिये सर्वोपरि है। इलाज में कोताही व कर्मियों की उपेक्षा संभव नहीं है। शिकायत मिलने पर सख्त कार्रवाई होगी।

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