प्रदूषण, धूल और चूल्हें का धुंआ सीओपीडी का बड़ा कारण

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लखनऊ। फेफड़े की बीमारी क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) अस्थमा से भी खतरनाक है। इस बीमारी का धूम्रपान इसका प्रमुख कारण होता है, लेकिन अब धूम्रपान न करने वालों को भी यह बीमारी हो रही है। इसमें प्रमुख रूप से चूल्हा का धुंआ, प्रदूषण और धूल है। इस पर किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में शोध किया गया है जिसमें प्रमुखता से धूम्रपान न करने वालों को ध्यान रखा गया है। शोध में सामने आया है कि सीओपीडी के मरीजों में काफी संख्या ऐसे मरीजों की है जो कि कभी धूम्रपान नहीं करते हैं। यह जानकारी शुक्रवार को विभाग प्रमुख डॉ सूर्यकांत ने यह जानकारी दी।

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उन्होंने बताया कि शोध में सभी वर्गो के कुल 360 मरीजों को शामिल किया गया। शोध में 216 मरीज ऐसे लिये गए जो स्मोकिंग करते थे और 144 मरीज ऐसे लिये गए जो स्मोकिंग नहीं करते थे। वर्ष 2016 में यह शोध शुरू किया गया था जो वर्ष 2019 तक चला। इस शोध को जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन ऐंड प्राइमरी केयर में प्रकाशित किया गया है। भारत में सीओपीडी से प्रति वर्ष पांच लाख की मौत हो जाती है। आंकड़ों के अनुसार दुनिया में प्रति वर्ष इस बीमारी से कुल 15 लाख लोग मरते हैं, जिनमें एक तिहाई मौतें सिर्फ भारत में ही होती है।

डॉ सूर्यकांत ने बताया कि शोध में देखा गया है कि धूम्रपान न करने वाले का एक्सरे नार्मल था। लेकिन स्नोफिंल बढ़ी हुई थी। जब कि धूम्रपान करने वालों का एक्सरें में काला स्पाट था आैर फेफड़ा का साइज भी बढ़ गया था। सीओपीडी के ज्यादातर मरीज 60 से 70 के उम्र है, जबकि धूम्रपान न करने वाले मरीज 51 से 60 वर्ष के बीच के हैं। प्रदूषण आैर धूल से जल्दी लोगों को यह घातक बीमारी हो रही है। अभी भी महिलाओं में चूल्हे में खाना बनाने से भी यह बीमारी हो रही है। देखा गया है कि महिलाएं चूल्हें में खाना व अन्य काम लगभग सात घंटे रहती है। यह धुंआ इस समय में 100 सिगरेट के बराबर हो जाता है। काम कर धूम्रपान करने वालों में 75 प्रतिशम मरीज पुरुष है और 25 फीसदी महिलाएं है, जबकि धूम्रपान न करने वालों में महिलाएं 70 फीसदी हैं। जो इस बीमारी की चपेट में आ चुकी है। डा. सूर्यकांत का कहना है कि यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि फेफड़े के बाद मल्टी आर्गन भी चपेट में ले लेती है।

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