लखनऊ । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रदेश में बांझपन के तकरीबन 3.7 प्रतिशत है। पश्चिमी देशों के आंकड़ों की तुलना में भारतीय महिलाओं में गर्भपात होने की संभावना होती है। ऐसी स्थिति में ओरल डाइड्रोजेस्टेरोन जैसे वैज्ञानिक समाधान की आवश्यकता है। यह जानकारी इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फर्टिलिटी सोसाइटीज के कॉर्पोरेट मामलों के निदेशक, डॉ. हृषिकेश पई ने पत्रकार वार्ता में दिया।
उन्होंने बताया कि हाल ही 300 से अधिक प्रकाशित अध्ययनों के परिणामों से यह पता चलता है कि स्त्रीरोग संबंधी कई अलग-अलग विकारों के लिए ओरल डाइड्रोजेस्टेरोन बेहद कारगर उपचार है, जिसमें गर्भधारण के शुरुआती तीन महीनों के दौरान गर्भपात की रोकथाम और इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन के लिए ल्यूटल फेज सपोर्ट शामिल है। डा. प्रीति कुमार ने बताया कि पहले गर्भपात के बाद 13-17 प्रतिशत और तीसरे गर्भपात के बाद 55 प्रतिशत हो सकती है। हालांकि बांझपन कई वजहों से होता है, तथा अध्ययनों से पता चलता है कि माँ बनने की उम्र इसके जोखिम के प्रमुख कारकों में से एक है।
चूंकि तेजी से शहरीकरण आैर अन्य कारणों से माँ बनने की उम्र लगातार बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया कि अध्ययनों से पता चलता है कि 32 प्रतिशत महिलाओं में गर्भपात की संभावना सबसे ज्यादा होती है। भारत में 7.5 प्रतिशत मामलों में बार-बार गर्भपात होता है। डा. प्रीति ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान विश्व स्वास्थ्य के लिए एक महिला में प्रोजेस्टेरोन का पर्याप्त स्तर होना आवश्यक है, यह बेहद महत्वपूर्ण हार्मोन है। प्रोजेस्टेरोन की कमी के कारण महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाते हैं तथा इसकी वजह से ही शुरुआती गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि डाइड्रोजेस्टेरोन का शरीर में बड़े आसानी से अवशोषण होता है। इसे मुंह के जरिए टैबलेट के रूप में लिया जाता है।
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