लखनऊ। इंडियोपैथिक पल्मोनेरी फाइब्रोसिस (आईपीएफ) फेफड़े की एक बीमारी है, जिसमें अनजान कारणों से फेफड़े में जख्म हो जाते हैं। बीमारी के होने की प्रमुख वजह, पर्यावरण से संबंधित हो सकती है, जैसे धूल या केमिकल के संपर्क में आने से, धूम्रपान, आईपीएफ का पारिवारिक इतिहास और वायरल इंफेक्शन हो सकता है। इसके कारण समय के साथ फेफड़ा डैमेज होने लगता है और उस पर जख्म (फाइब्रोसिस) हो जाते हैं, इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी की वजह से मरीज के लिये सांस लेना मुश्किल हो जाता है, इससे आखिरकार रोजमर्रा की जिंदगी पर प्रभाव पड़ता है।
केजीएमयू के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. सूर्य कांत से पत्रकार वार्ता में जानकारी दी। लखनऊ में बढ़ते आईपीएफ में बारे में कहा कि पिछले 10 सालों में आईपीएफ के मामलों में हर साल 8-10 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इसके सबसे आम लक्षणों में शामिल है, लंबे समय तक सूखी खांसी का होना, सांस लेने में परेशानी, वजन, भूख का कम होना और उंगलियों का आपस में जुड़ जाना होता है। आईपीएफ एक ऐसी समस्या है, जिसे बिगड़ते देर नहीं लगती और अलग-अलग लोगों में इसके लक्षणों में फर्क आ सकता है। पुरुषों में यह बीमारी आम होती है। पुरुषों और महिलाओं में इस बीमारी का अनुपात 60:40 पाया गया है। इसलिये स्पेशलिस्ट से जांच करवाना जरूरी है।
आम भाषा में कहा जाये तो इसका कोई सटीक इलाज नहीं है, क्योंकि जख्म होने के बाद फेफड़े के टिशू की क्षमता इतनी कम हो जाती है कि उसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता। वैसे समय पर इसका पता लगाना और इलाज करवाने से इस बीमारी को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है और मरीज की उम्र बढ़ायी जा सकती है। आईपीएफ की समय पर जांच बेहद अहम होती है क्योंकि इससे बीमारी का बोझ कम करने और इसे आगे बढ़ने से रोकने में भी में मदद मिलेगी। लोगों को साल में एक बार एक्सपर्ट से जरूर नियमित जांच करवानी चाहिये। यदि परिवार में यह समस्या रही है तो व्यक्ति के लिये नियमित रूप से इसकी जांच करवाना अति आवश्यक है और बताये गये इलाज का पालन करना भी जरूरी है।
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