किडनी ट्रांसप्लांट – बदलती जीवनशैली की वजह से कई बीमारियों के साथ-साथ गुर्दे खराब होने के मामले भी बढ़ रहे हैं। एक बार गुर्दे की बीमारी हो जाती है तो उसे सही करना बहुत मुश्किल हो जाता है। लेकिन पूरी सावधानियां बरती जाएं तो किडनी खराब होने के बाद भी मरीज लंबी ठीक-ठाक जिदगी जी सकता है। इस बीमारी के बारे में पीजीआई के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ धर्मेन्द्र भदौरिया ने बताया कि गुर्दा खराब होने पर अंतिम विकल्प किडनी ट्रांसप्लांट है।
केवल भारत में ही हर साल 4०० से ज्यादा लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है। लेकिन डोनर नहीं होने की वजह से कुछ ही लोगों का ट्रांसप्लांट हो पाता है।
क्या है किडनी ट्रांसप्लांट ?
डॉ धर्मेन्द्र भदौरिया ने बताया कि पीजीआई में हर साल लगभग 125 ट्रांसप्लांट होते हैं। उन्होंने बताया कि यह एक ऐसी सजर्री है, जिसमें क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीज को अलग से एक स्वस्थ किडनी लगा दी जाती है, जिससे व्यक्ति को डायलिसिस पर रखने की जरूरत नहीं पड़ती। यह स्वस्थ किडनी या तो एक जीवित व्यक्ति दे सकता है या फिर डॉक्टरों की ओर से प्रमाणित किया हुआ एक ब्रेन डेड व्यक्ति। कोई भी स्वस्थ व्यक्ति, जिसका ब्लड ग्रुप मरीज से मिलता हो, जो 18 से 55 की उम्र के बीच का हो, वह अपनी किडनी दान दे सकता है। नियमों के अनुसार अपनी किडनी दान देने वाला व्यक्ति परिवार का ही कोई सदस्य होना चाहिए या फिर कोई रिश्तेदार हो सकता है। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद डोनर को एक महीने तक डॉक्टरों की निगरानी में रहना पड़ता है।
किडनी ट्रांसप्लांट के फायदे –
- जिदगी भर की डायलिसिस के बंधन से छुटकारा मिलता है।
- मरीज सामान्य व्यक्तियों की तरह जीवन जी पाता है। किसी भी काम के लिए उसे दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।
- की अपेक्षा इसमें खाने-पीने में कम परहेज होता है।
- शारीरिक और मानिसक रूप से स्वस्थ रहता है।
- ट्रांसप्लांट के शुरुआती एक साल तक इलाज में खर्च होता है, उसके बाद इसका खर्च कम हो जाता है।
क्यों बेहतर है किडनी ट्रांसप्लांट ?
- लंबे समय तक डायलिसिस पर रखने से होने वाली समस्याओं (संक्रमण, अनीमिया, हाईपरटेंशन, कुपोषण) से बचा जा सकता है।
- कार्डियोवस्कुलर डीजीज के बुरे प्रभावों से बचाता है। बेहतर जीवन की गारंटी देता है।
- ट्रांसप्लांटेशन के बाद किडनी के रिजेक्शन की आशंका कम रहती है और किडनी अपना कार्य भी अच्छी तरह से करती है।