लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय मेंं ई -हास्पिटल साफ्टवेयर को लागू किये जाने वाले दावे एक बार फिर खोखले साबित हो गये है। आर्थिक संकट कम करने की बजाय करोड़ों रुपये का सालाना भुगतान करके नयी दिल्ली की कम्पनी को तैनात किया गया है। आनलाइन व्यवस्था को चाक-चौंबद करने के लिए कम्पनी को लाखों रुपये की पहली किस्त अदा कर दिया गया। जब कि अभी तक पिछली बार किये गये लाखों रु पये का घोटाला में लिफ्त डाक्टरों पर कार्रवाई नहीं हो पायी है।
केजीएमयू में आये दिन मरीजों को कभी नेट की गति कम होने से पर्चा नहीं बन पाता है, तो कभी जांच रिपोर्ट नहीं मिल पाती है। इसे लेकर मरीजों को हंगामा तक करना पड़ता है। आर्थिक घोटाले में एक ही पर्चे पर अलग- अलग यूएचआईडी का मामला भी पकड़ा जा चुका है। इसी तरह कैंपस को कैशलेस करने के दावे के साथ शुरू किया गया, तो स्मार्ट कार्ड सिस्टम भी बंद किया जा चुका है। अब एक बार फिर साफ्टवेयर और आनलाइन व्यवस्था का मामला सुर्खियों में है। केजीएमयू प्रशासन ने कुछ जिम्मेदार अधिकारियों ने मई 2017 में तत्कालीन सेंट्रल पेसेंट मैनेटमेंट सिस्टम (सीपीएमएस) को खर्चीला बताकर बंद कर दिया गया।
उस वक्त अधिकेरियोंह ने यह दावा किया गया था कि केजीएमयू में ई- हास्पिटल साफ्टवेयर लागू किया जाएगा। इससे केजीएमयू पर कोई आर्थिक भार नहीं पड़ेगा। यह भी दावा किया गया कि इंटरनेट सेवाएं भी मुफ्त मिल रही हैं। अब दो साल बाद केजीएमयू प्रशासन ने आनलाइन व्यवस्था के संचालन के लिए नई कंपनी एनआईसी एसआई नई दिल्ली से नया करार किया है। इसे 16 अप्रैल को 41 लाख 60 हजार आठ सौ 32 रुपये का भुगतान किया गया है, जबकि इस कंपनी को कुल 1 करोड़ 40 लाख का भुगतान किया जाना है। केजीएमयू प्रशासन तर्क दे रहा है कि यहां कोई साफ्टवेयर इंजीनियर नहीं है। इसलिए व्यवस्था के संचालन के लिए एक कंपनी से करार किया गया है।
केजीएमयू के मीडिया प्रभारी डा. सुधीर का कथन है कि केजीएमयू में साफ्टवेयर के संचालन और आनलाइन व्यवस्था की निगरानी के लिए उस वक्त हुआ अनुबंध मुफ्त था। दिसंबर में उसकी मियाद खत्म हो गई है। अब नई कंपनी से अनुबंध किया गया है। इसलिए उसे करीब 41 लाख भुगतान किया गया है। केजीएमयू में साफ्टवेयर इंजीनियर नहीं है। इसलिए कंपनी पूरी व्यवस्था चलाएगी।
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