महिला व पुरुष दोनों में ब्लेडर कैंसर होने की संभावना एक समान होती है। आंकड़ों के मुताबिक महिला तथा पुुरुष में यूरीन ब्लेडर कैंसर की समस्या बराबर अनुपात में देखी गयी है। यह कहना है केजीएमयू के कुलपति प्रो.एमएलबी.भट्ट का। वह मंगलवार को एसोसिएशन ऑफ क्लीनिकल बायोकेमिस्ट्स एसीबीआईकान-२०१७ को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होने ‘आइडन्टी फिकेशन आफ नोवल बायोमार्कर आफ हूमन युरिनली ब्लैडर कैंसर युजिंग हार्इ डेन्सटी ऑलिगोन्यूक्लियोटाइड माइक्रोएरेÓÓ के केविषय पर जानकारी देते हुए बताया कि मूत्राषय के कैंसर की जल्द पहचान और उस पर निगरानी के लिए प्रोटीन और सेल आधारित यूरीन बायोमार्कर का उपयोग किया जा सकता है। इन मार्करों की सहायता से इस बीमारी को मॉलिक्यूल के अधार पर जल्द पहचान कर इस का प्रभावि उपचार किया जा सकता है।
पुरूषों और महिलाओं में यूरिनरी ब्लैडर को पहचानने के लिए बहुत सार ेमॉलिक्यूल की जांचकर पता लगाया जाता है। इसके अलावा नीदरलैण्ड से आये डा. हरि शर्मा ने ”एन्जोजेनिस ग्रोथ फेक्टर इन दा हार्ट: एन एन्डोजेनस रूट फ ार कारडिक प्रजरवेटिवÓ पर अपना वयख्यान देते हुए बताया कि भारत मे लोगो की बदलती जीवन शैली की वजह से हार्ट अटैक का रेट बढ़ रहा है। दुनिया मे सबसे ज्यादा भारत मे हार्ट से सम्बंधित बीमारिया होती है और हार्ट अटैक का रेट भी यहां सबसे ज्यादा है। पश्चिमी देशों मे यह बीमारी ५० से ६० वर्ष के लोगों मे होती है जब कि भारत में यह ३० से ४० वर्ष के लोगो में भी बहुतायत मे हो रही है। हार्ट की बीमारी से बचने के लिए अपनी जीवन चर्या में सुधार कर दिल की बीमारी से बचा जा सकता है।
भारतीय लोगो में अनुवांशिक रूप से बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा ज्यादा होती है तथा इसको योग और रेगुलर एक्सरसाईज से सही किया जा सकता है। वहीं यूएई के डा.वीके.मिश्रा ने बताया कि हार्ट अटैक आने पर इसका पता इसीजी और ट्राप्टी की जांच कराने पर चलता है कि मरीज को हार्ट अटैक आया है कि नही। अगर किसी मरीज को हार्ट अटैक आता तो उसके रक्त में १ से ३ घण्टे के अंदर ट्रोपोनाईन की मात्रा बढऩे लगती है। ये दो प्रकार की होती है जिसमे हाई सेसटीव ट्रोपोनिन की जांच ज्यादा प्रभावशाली होती है। यो शरीर में दो से चार घण्टे में बढ़ जाता है।
एल्कोहल लेने वाले खानपान का रखे ख्याल:प्रो.सुबीर
बेस्ट बंगाल स्थित मेडिसिन एण्ड जेएनएम अस्पताल के बायोकेमिस्ट्रिी विभाग के प्रो. सुबीर कुमार दास ने बताया कि ४ से ६ प्रतिशत लोग एल्कोहलिक लिवर की बीमारी से ग्रसित होते हैं। ये ऐसे मरीज होते है जो रोजाना शराब का सेवन करते है किन्तु उचित मात्रा में न्यूट्रिशन और एन्टीऑक्सीडेन्ट नही ले पाते है। ये बीमारी शराब पीने वाले केवल ५ से १० प्रतिशत लोगो में होती है। इसकी जांच के लिवर फंक् शन टेस्ट किया जात है । जिसके बाद लीवर में हो रही समस्याओं का पता चलता है। एल्कोहल का सेवन करने वाले लोगो को अपने खान पान पर बहुत ज्यादा ध्यान देना चाहिए उन्हे पोषण और एण्टी ऑक्सीडेण्ट से भरे भोज्य पदार्थ को खाना चाहिए वीटामिन इ का सेवन ज्यादा करना चाहिए।