लखनऊ। दिव्यांग नीलू ने मैकेनिकल इंजीनियर महेंद्र का साथ पाया, तो उसकी दुनिया की रंगत ही बदल गयी। इसमें उसका साथ किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के डीपीएमआर विभाग की कृत्रिम अंग निर्माण विशेषज्ञ सीनियर प्रोस्थेटिस्ट शगुन ने दिया। विशेष तकनीक से नीलू का कृत्रिम पैर डिजाइन करके उसका निर्माण करके दिया, जब कटे पैर में कृत्रिम अंग पहन कर नीलू का कहना है कि अब उसकी जिंदगी आैर खुशहाल हो गयी है आैर वह अब मुम्बई जा रही है।
सीनियर प्रोस्थेटिस्ट तथा वर्कशाप प्रभारी शगुन का कहना है कि नीलू जन्म से दिव्यांंग नहीं थी। किशोरोवस्था में गांव में बरसात के दौरान अचानक पेड़ गिर पड़ा था। उससे वह ठीक तो हो गयी, लेकिन दांया पैर घुटने के नीचे से काटना पड़ा। पिता एक स्कूल में हेल्पर के पद पर तैनात थे आैर पैर कटने के बाद समय पर सही जानकारी नहीं मिलने के कारण घुटना भी जाम होकर मुड़ गया। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी आैर एक छोटी बहन व छोटा भाई भी फिर भी उसने पढ़ाई करने के साथ ही कम्प्यूटर की भी शिक्षा ली। इसके बाद उसने सरोजनी नगर स्थित निजी डायग्नोस्टिक सेंटर में कम्प्यूटर आपरेटर के पद पर काम लगी आैर परिवार को सम्हाला। इस दौरान किसी परामर्श पर उसने केजीएमयू के डीपीएमआर विभाग की ओपीडी में डाक्टर को दिखाया तो उसे पैर का एम्पूटेशन (दोबारा काट कर कृत्रिम अंग लगाने के शेप में लाना) कराने के लिए कहा गया, लेकिन उसे एम्पूटेशन नहीं कराने के लिए कहा, इस पर सीनियर प्रोस्थेटिस्ट शगुन ने उसका कृत्रिम पैर बनाने की ठानी, घुटना जाम होने के साथ मुड़ा होने पर पैर को अलग तरीके डिजाइन करने विशेष तकनीक से घुटने के नीचे पैर लगाया गया। शगुन बताती है कि कृत्रिम पैर लगाने के बाद उसने चलने का अभ्यास भी तेजी से करके चलना सीख लिया। उन्होंने बताया कि इस बीच उसकी शादी के लिए रिश्ता आया, कुशीनगर निवासी मैकेनिकल इंजीनियर महेंद्र नीलू को दिव्यांग होने के बाद भी जीवन साथी बनाने का निर्णय लिया आैर शादी कर ली। नीलू अब पति के साथ मुम्बई रहने जा रही है। अब वह सामान्य तरीके से चलने लगी है। उसके चलने पर कृत्रिम पैर लगे होने का पता ही नहीं चलता है।