लखनऊ। कोई भी आहार निगलने में दिक्कत , चेस्ट पेन, रात में भोजन का वापस गले में आना के साथ सीने में भारी पन होने की दिक्कत बनी रहती है, तो सर्तक हो जाएं। यह आहार नली की गंभीर बीमारी अचालसिया कॉर्डिया भी होने की संभावना होती है। इसके मरीज के शरीर के वजन में कमी होने लगती है। समय पर सही इलाज से बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
यह बात हैदराबाद एआईजी इंटरवेंशनल एंडोस्कोपी के निदेशक डॉ. मोहन रामचंदानी ने शनिवार को किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग द्वारा आयोजित अचलासिया कॉर्डिया बीमारी व इलाज पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए कही।
डॉ. रामचंदानी ने कहा कि अचालेसिया कार्डिया इसोफेगस की एक दुर्लभ बीमारी कही जाती है। इस बीमारी में भोजन को पेट तक पहुंचाने वाली प्रक्रिया बाधित हो जाती है। इसमें अन्नप्रणाली के निचले भाग की मांसपेशी अत्यधिक कड़ी हो जाती है, जो कि मरीज में भोजन को पेट तक पहुंचने से रोकती है। इससे मरीज को कई प्रकार की दिक्कत होती है। केजीएमयू गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. सुमित रूंगटा ने कहा कि अचालेसिया के इलाज में प्री ओरल एंडोस्कोपी मायोटॉमी तकनीक कारगर है। यह एक अत्याधुनिक मिनिमली इनवेसिव एंडोस्कोपिक प्रक्रिया है।
इस तकनीक में मुंह के रास्ते एंडोस्कोप को खाने की नली में प्रवेश कराया जाता है। वहां एक माइनकर कट लगाकर मांसपेशियों को सटीक रूप से अलग कर देती है, जिससे मांसपेसियों पर बना कसाव कम हो जाता है। मरीज को सामान्य रूप से भोजन निगलने में सहायता मिलने लगती है। इस सर्जरी में मरीज को जल्दी राहत मिलती है।
अधिकतर मामलों में वे एक से दो दिनों के भीतर दैनिक दिन चर्या में लौट सकते हैं। कार्यशाला में डॉ. अनन्य गुप्ता, डॉ. मयंक राजपुर, डॉ. प्रीतम दास, डॉ. सयान मलाकार, डॉ. श्रीकांत कोथालकर एवं डीएम कोर्स के अन्य छात्र मौजूद थे।