दिव्य शक्ति की आराधना का पर्व है गुप्त नवरात्रि: डॉ. कौशलेन्द्र शास्त्री

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26 जून से आरंभ होगा दिव्य साधना का पर्व – गुप्त नवरात्रि

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ध्रुव योग और सर्वार्थ सिद्धि योग में होगी कलश स्थापना

गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की साधना से मिलती हैं दिव्य सिद्धियां

लखनऊ। इस वर्ष गुप्त नवरात्रि का शुभारंभ 26 जून 2025 को आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होगा। नवरात्रि का पर्व माँ दुर्गा और उनके विविध स्वरूपों की आराधना का महापर्व है। यह साधना, जप-तप और रहस्यमयी तांत्रिक विधियों से युक्त होती है। ज्योतिषाचार्य पं. अतुल शास्त्री के अनुसार, कलश स्थापना 26 जून को अभीजीत मुहूर्त (सुबह 10:58 से 11:53 तक) में की जाएगी। यह नवरात्रि 4 जुलाई को समाप्त होगी।

गुप्त नवरात्रि, जो आषाढ़ और माघ मास में मनाई जाती है, विशेष तांत्रिक साधना और सिद्धियों की प्राप्ति का काल होती है। इस बार नवरात्रि के पहले दिन ध्रुव योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का विशेष संयोग है, जो साधना को अत्यंत प्रभावशाली बनाएगा।

इस दौरान साधक 10 महाविद्याओं, काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला,की पूजा करते हैं। ये दस महाविद्याएं शक्ति के दस रहस्यमय और दिव्य स्वरूप हैं, जिनसे साधक संकटों से मुक्ति और चमत्कारी सिद्धियाँ प्राप्त करता है।
गुप्त नवरात्रि के अवसर पर विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ, घी का दीप प्रज्वलन, एक ही स्थान और आसन पर पूजा, तथा शुद्ध आचरण व वातावरण बनाए रखना अनिवार्य होता है। पंडित अतुल शास्त्री ने बताया कि इस दौरान साधक को एकाग्रता और संकल्प के साथ प्रतिदिन माता के एक स्वरूप की साधना करनी चाहिए।

ऐतिहासिक दृष्टांतों में भी शक्ति साधना का महत्व स्पष्ट होता है। रामायण में वर्णित है कि श्रीराम ने लंका विजय से पूर्व देवी की पूजा की थी, जिसमें उन्होंने सौ आठ कमल अर्पित किए थे। अंतिम कमल के अभाव में उन्होंने अपनी आँख अर्पित करने का संकल्प किया, जिससे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें विजय का वरदान दिया।

इसी प्रकार महिषासुर वध की कथा में, देवताओं द्वारा अपनी शक्तियाँ समर्पित कर देवी दुर्गा की उत्पत्ति की गई थी। उन्होंने महिषासुर का संहार किया और महिषासुर मर्दिनी कहलाईं।
गुप्त नवरात्रि केवल पूजा-पाठ नहीं बल्कि आत्मिक एवं मानसिक साधना का पर्व है, जिसमें शक्ति के विविध रूपों का आह्वान कर जीवन की कठिनाइयों पर विजय पाई जाती है। यह पर्व न केवल तांत्रिक साधकों बल्कि आम श्रद्धालुओं के लिए भी विशेष फलदायी माना गया है।

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