…. आैर नही रहे प्रेम, विरह, प्रकृति से रचे बसे गीतों के गीतकार गोपाल दास नीरज

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न्यूज डेस्क। ए भाई देख कर चलो…. लिखे जो खत तुझे तेरी याद में…. आदि चर्चित गीत आज भी लोगों को बरबस गुनगुना पर मजबूर कर देते है। इसके लिए भारतीय सिनेमा जगत में गोपाल दास नीरज का नाम एक ऐसे गीतकार के तौर पर याद किया जायेगा जिन्होंने प्रेम, विरह, प्रकृति और जीवन से रचे बसे गीतों की रचना कर श्रोताओं का दिल जीता। इलाज के लिए दिल्ली के एम्स में भर्ती गोपाल दास नीरज ने आज अंतिम सांस ली।

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गोपालदास सक्सेना’नीरज”का जन्म उत्तर प्रदे श के इटावा जिले में 04 जनवरी 1925 को हुआ था। नीरज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इटावा से पूरी की। इसके बाद उन्होंने स्नाकोत्तर की पढ़ाई कानपुर के डी.ए.भी कॉलेज से पूरी की। नीरज
का बचपन काफी संघर्ष एवं अभाव से बीता। विभिन्न कारणो से उत्पन्न अनुभव को नीरज ने अपने दिल की अतल गहराइयों मे सहेज कर रखा और बाद में उन्हें अपने गीतो में पिरोया।

नीरज के गीतों में जिंदगी की कशमकश को काफी शिद्दत से महसूस किया जा सकता है। नीरज जिंदगी के उतार चढाव तथा जीवन के सभी पहलुओं को शायद बहुत ही करीब से महसूस किया। शायद यही वजह है कि उनके गीतों में जिंदगी का जुडा संघर्ष झलकता है। युवावस्था में पहुंचते हीं नीरज के गीतो की धूम मच गयी। सभी उन्हें आदर सहित कवि
सम्मेलन में बुलाने लगे। इसके बाद नीरज के गीतों की देश भर में धूम तो हो ही गयी लेकिन उनकी पारिवारिक जरूरतें पूरी नही हो रही थी। कवि सम्मेलन से प्राप्त आय से परिवार की गाड़ी खींचनी मुश्किल थी ।

परिवार के बढ़ते खर्चो को देखकर नीरज अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिंदी विभाग के प्रोफेसर के रूप में काम करने लगे। इस बीच कवि सम्मेलन में भाग लेना जारी रखा । इसी दौरान एक कवि सम्मेलन के दौरान उनके एक गीत को सुनकर निर्माता आर. चंद्र्रा गद्गद् हो गये उन्होंने नीरज में भारतीय सिनेमा का एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया। आर.चंद्रा ने नीरज को अपनी फिल्म नयी उमर की नयी फसल के लिये गीत लिखने की गुजारिश कर दी लेकिन
नीरज को यह बात रास नही आई और उन्होंने उनकी पेशकश ठुकरा दी।

लेकिन बाद में घर की कुछ जिम्मेदारियों के कारण उन्होंने आर.चंद्रा से दोबारा संपर्क किया और अपनी शर्तों पर हीं गीत लिखना स्वीकार किया। वर्ष 1965 में नीरज बेहतर जिंदगी की तलाश में मायानगरी मुंबई आ गये। नीरज को सबसे पहले आर.चंद्रा की फिल्म नयी उमर की नयी फसल के लिये गीत लिखने का मौका मिला। कुछ दिनों के बाद नीरज को मुंबई फिल्म इंडस्ट्री की चकाचौंध कुछ अजीब सी लगने लगी और वह मुंबई छोड़कर वापस अलीगढ़ चले गये ।

अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज की अर्थव्यवस्था को देख नीरज का मन दुखी हो गया और वह एक बार फिर से नये जोशोखरोश से बतौर गीतकार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिये मुंबई आ गये। मुंबई आने के बाद नीरज को
काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस दौर में पंजाब से आये हुये लोगो का फिल्म इंडस्ट्री में दबदबा था । फिल्म की कहानी और गीत पर उर्दू जुबान काफी हद तक हावी थी। नीरज ने फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी पहचान बनाने के लिये अथक प्रयास किया। नीरज ने सरल शब्दों में कर्णप्रिय गीतों की रचना कर फिल्म इंडस्ट्री का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। शीघ ही उनकी मेहनत रंग लाई और वह बतौर गीतकार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो
गये।

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