उत्तर भारत में पहला आटो लिवर ट्रांसप्लांट सफल

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न्यूज। लिवर की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित किर्गिस्तान की 35 वर्षीय एक महिला को यहां के एक प्रमुख निजी अस्पताल में ‘ऑटो लीवर ट्रांसप्लांट’ के जरिए नया जीवन मिला। डाक्टरों ने यह जानकारी दी।
एक बयान में अस्पताल ने दावा किया कि इस प्रक्रिया से लिवर ट्रांसप्लांट उत्तर भारत में पहली बार अपनायी गई है।

 

 

 

 

 


बताते चले कि ऑटो लिवर (यकृत) प्रतिरोपण में लिवर को शरीर से निकाल दिया जाता है और एक विशेष प्रकार के प्रिजर्वेटिव घोल में रखा जाता है, जिसके बाद लिवर के रोगग्रस्त हिस्से को तकनीक से हटा दिया जाता है, क्षतिग्रस्त नसों को फिर से बनाया जाता है या कृत्रिम नसों से बदल दिया जाता है। यह कार्य बहुत कठिन है उसके बाद अंत में लिवर को फिर से शरीर में लगाया जाता है।
अस्पताल ने कहा कि किर्गिस्तान की नागरिक को बीते तीन महीनों से पेट में दर्द था। हाल ही में उसका फोर्टिस एस्कॉट्र्स अस्पताल में इलाज किया गया।

 

 

 

 

 

बयान में कहा गया कि अस्पताल में यकृत प्रतिरोपण विभाग के प्रमुख डॉ. विवेक विज के नेतृत्व में डाक्टरों के एक टीम आठ घंटे तक चले ऑपरेशन में ”जटिल प्रतिरोपणों जज प्रक्रिया को अंजाम दिया।

 

 

 

 

 

विज ने बयान में कहा, ”ऑपरेशन के दौरान हमने यकृत के क्षतिग्रस्त हिस्से को हटा दिया आैर इसे सफलतापूर्वक यकृत के सामान्य हिस्से से बदल दिया। ऑपरेशन के बाद, रोगी के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ आैर ऑपरेशन के आठवें दिन बिना किसी ‘इम्यूनोसप्रेसेंट” दवाओं के स्थिर स्थिति में उसे छुट्टी दे दी गई। ‘इम्यूनोसप्रेसेंट दवाओं की आमतौर पर अंग प्रतिरोपण के बाद आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा कि रोगग्रस्त हिस्से को हटाना काफी चुनौतीपूर्ण था , क्योंकी गुरु यकृत आसपास की महत्वपूर्ण संरचनाओं में फंस गया था आैर अन्य जटिलताओं आैर रक्तरुााव के साथ महत्वपूर्ण अंगों को चोट लगने का खतरा था।

 

 

डॉ. विज ने कहा, ”इस विशेष मामले में, हमने एक नई तकनीक (ऑटो लीवर ट्रांसप्लांट) का विकल्प चुना, जहां यकृत के क्षतिग्रस्त हिस्से को हटा दिया गया।””

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