स्तनपानः शिशुओं और माताओं के लिए एक वरदान

0
719

नई दिल्ली – स्तनपान 21वीं शताब्दी में अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, ज्यादातर देशों में पहले छह महीने में केवल स्तनपान कराने की दर 50 प्रतिशत से भी नीचे है जोकि वर्ल्ड हेल्थ असेंबली का 2025 का लक्ष्य है। इस स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अब हम जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल एक अगस्त से 8 अगस्त तक स्तनपान सप्ताह मनाते हैं। इस प्रमाण आधारित अनुसंधान से एक बार फिर से स्तनपान का महत्व सामने आया है।

Advertisement

आईवीएच सीनियर केयर में वरिष्ठ न्यूट्रिशन एडवाइज़र डॉक्टर मंजरी चंद्रा ने कहा, श्गर्भधारण से शुरू होकर दूसरे जन्मदिन तक जीवन के प्रथम हजार दिनों में पोषण की आपूर्ति से दीर्घकालीन स्वास्थ्य की नीव पड़ती है। स्तनपान इस प्रारंभिक पोषण का एक आवश्यक हिस्सा है क्योंकि मां का दूध पोषक तत्वों और बायोएक्टिव निर्माण कारकों का एक बहुआयामी मिश्रण है जोकि जीवन के शुरुआती 6 महीनों में एक नवजात शिशु के लिए आवश्यक हैं। जीवन की शुरुआत में पोषक तत्वों की कमी का लंबे समय में असर दिख सकता है जो कई पीढ़ियों तक रह सकता है।

प्रथम छह महीनों के लिए केवल मां का दूध क्यों ?

मां का दूध मैक्रोन्यूट्रिएंट्स, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स, बायोएक्टिव घटकों, वृद्धि के कारकों और रोग प्रतिरोधक घटकों का एक मिश्रण होता है। यह मिश्रण एक जैविक द्रव पदार्थ है जिससे आदर्श शारीरिक और मानसिक वृद्धि में मदद मिलती है और बाद के समय में शिशु को मेटाबॉलिज्म से जुड़ी बीमारी की आशंका खत्म हो जाती है।

जिन बच्चों को केवल मां का दूध नहीं दिया जाता है, उन्हें संक्रमण होने का खतरा होता है और उनका आईक्यू भी कम रह सकता है। उनकी सीखने की क्षमता कम होती है और स्कूल में उन बच्चों के मुकाबले उनका प्रदर्शन कमजोर रहता है जिन्हें पहले छह महीने सिर्फ मां का दूध मिला है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, हर साल दो करोड़ से अधिक शिशुओं का वज़न जन्म के समय 2.5 किलो से कम रहता है और दुर्भाग्य से इनमें से 96 प्रतिशत विकासशील देशों में हैं। बचपन में इन शिशुओं में सामान्य विकास में कमी, संक्रामक बीमारी, धीमी वृद्धि और मृत्यु होने का जोखिम अधिक होता है।

ऐसे पर्याप्त प्रमाण मिले हैं जिनसे इन शिशुओं में जीवन के प्रथम 24 घंटों में स्तनपान का महत्व उजागर होता है। जिन शिशुओं को जन्म के 24 घंटे के भीतर स्तनपान कराया जाता है, उनमें उन बच्चों के मुकाबले मृत्यु दर कम देखने को मिली है जिन्हें 24 घंटे बाद स्तनपान कराया जाता है।

वरिष्ठ शिशु चिकित्सक और ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया (बीपीएनआई) के संयोजक डॉक्टर अरुण गुप्ता के मुताबिक, श्स्तनपान बच्चे के स्वास्थ्य, उसके जीवित रहने और विकास के लिए आवश्यक है, इसके बावजूद भारत में हर 5 में से 3 महिलाएं जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान शुरू करने में समर्थ नहीं हैं। केवल एक या दो महिलाएं ही प्रथम छह महीने तक अपने बच्चे को केवल अपना दूध पिलाती हैं।

इसकी वजह यह है कि महिलाओं को घर, दफ्तर और अस्पतालों में स्तनपान कराने के लिए विभिन्न्ा अड़चनों का निरंतर सामना करना पड़ता है। इन अड़चनों को दूर करनें से ही सफलता मिल सकती है और यह काम सरकारी एवं निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा किया जा सकता है।

स्तनपान कराने वाली माता के लिए आवश्यक पोषक तत्व

बच्चे को अपना दूध पिलाने वाली मां को प्रतिदिन अतिरिक्त 500 ाबंस की आवश्यकता होती है। जब माताएं अपने भोजन में इन अतिरिक्त आवश्यक पोषक तत्वों को निरंतर नहीं लेती हैं तो शरीर दूध तैयार करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा लेता है जिससे वज़न घट जाता है

डॉ मंजरी चंद्राए वरिष्ठ पोषण सलाहकारए आईवीएच सीनियरकेयरए ने कहा, स्तनपान कराने वाली माताओं को प्रतिदिन उन विटामिन सप्लीमेंट्स को लेना जारी रखने की सलाह दी जाती है जो उन्होंने प्रसव पूर्व लिया था। विटामिन मां के दूध में स्रवित होते हैं और मां के शरीर में पोषक तत्वों की कमी से सीधे तौर पर उनका दूध प्रभावित होता है। शाकाहार करने वाली माताओं को विटामिन डी, बी12 और कैल्शियम की भी आवश्यकता होती है।

माताओं को स्तनपान कराने के लाभ

स्तनपान को हमेशा से ही नवजात शिशुओं के लिए एक वरदान के तौर पर देखा गया है और मातृ़त्व लाभों को हाल तक महसूस नहीं किया गया। मंजरी चंद्रा ने कहा, श्नए प्रमाणों से पता चला है कि स्तनपान कराना माताओं के लिए भी समान रूप से महत्वपूर्ण है और इससे कई अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन लाभ मिलते हैं। माताओं को तत्काल होने वाले लाभों में प्रसव के उपरांत वज़न में कमी और मां एवं शिशु के बीच गहरा रिश्ता शामिल हैं। गर्भावस्था के समय गर्भाशय में नए जीवन को सहयोग के लिए कई शारीरिक बदलाव होते हैं। गर्भावस्था के दौरान शरीर हाइपरलिपिडेमिक और इंसुलिन रोधक चरण से गुज़रता है जिससे बाद के जीवन में ह्रदय रोग और टाइप-2 मधुमेह होने की आशंका बढ़ती है। स्तनपान से लंबे समय में मेटाबॉलिक और ह्रदय की बीमारियांे का जोखिम घटते देखा गया है और यह टाइप-2 मधुमेह के जोखिम में 4-12 प्रतिशत की कमी लाने से जुड़ा है।

स्तनपान को प्रोत्साहन देना, आने वाली पीढ़ियों का एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए आज के समय की जरूरत है। विश्व स्तनपान सप्ताह एक शानदार पहल है, हालांकि महज एक सप्ताह से भारत के लिए यह समस्या हल नहीं होगी क्योंकि भारत स्तनपान कराने की व्यवस्था में दक्षिणपूर्व देशों में सबसे निचले पायदान पर है जहां केवल 44 प्रतिशत शिशु जीवन के शुरुआती घंटे में मां का दूध पी पाते हैं। स्तनपान की व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सरकार और समाज द्वारा सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है। शिशु की देखभाल करने वाली माताओं को एक अनुकूल माहौल उपलब्ध कराने के लिए सरकार को सार्वजनिक स्थानों पर नर्सिंग कक्षों का निर्माण करने की प्रतिबद्धता दिखानी है और समाज को सार्वजनिक जगह पर स्तनपान पर रोक के खिलाफ आने की जरूरत है।

अब PayTM के जरिए भी द एम्पल न्यूज़ की मदद कर सकते हैं. मोबाइल नंबर 9140014727 पर पेटीएम करें.
द एम्पल न्यूज़ डॉट कॉम को छोटी-सी सहयोग राशि देकर इसके संचालन में मदद करें: Rs 200 > Rs 500 > Rs 1000 > Rs 2000 > Rs 5000 > Rs 10000.

Previous article… आैर भगवा रंग दिखने लगा कांग्रेस का मीडिया रूम
Next articleमानसून में जरा सी सावधानी बचा सकती है त्वचा रोग

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here