घबराये नहीं, ब्रेस्ट कैंसर सर्जरी के बाद नहीं बदलेगा साइज

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लखनऊ। महिलाएं फिगर के साइज को लेकर बेहद संवेदनशील रहती है। अगर ब्रेस्ट कैंसर में सर्जरी के बाद साइज बदल जाने से तनाव में आ जाती है, पर उनका आत्मविश्वास वापस लाने का काम किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. अभिनव अरुण सोनकर व उनकी टीम कर रही है। यह टीम ब्रेस्ट कैंसर सर्जरी के बाद ब्रेस्ट का साइज सुधारने के लिए पैडिकल व प्री फ्लैप तकनीक सर्जरी कर रही है। यह सर्जरी केजीएमयू में जल्द ही शुरू की गयी है। यह जानकारी डा. अक्षय आनंद ने किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग में चल रही सर्जरी अपडेट में कही।

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सर्जरी के बाद देखने में ब्रेस्ट सामान्य ही लगता है –

विभाग प्रमुख व विशेषज्ञ प्रो. सोनकर ने बताया कि ब्रेस्ट कैंसर सर्जरी में सबसे पहले कोशिश यह रहती है कि ब्रेस्ट से कैंसर की गांठ निकालने के साथ कम से कम भाग निकाल जाए, पर एडवांस कैंसर सर्जरी में काफी भाग निकल जाता है। इस कारण महिलाएं हीन भावना से ग्रसित हो जाती है। ऐसे में महिलाओं को तनाव मुक्त व बेहतर स्थिति करने के लिए पैडिकल व प्री फ्लैप तकनीक से सर्जरी करके ब्रेस्ट का साइज दूसरे ब्रेस्ट के बराबर कर दिया जाता है। सर्जरी के बाद देखने में ब्रेस्ट सामान्य ही लगता है।

उन्होंने बताया कि इस सर्जरी में पेट या पीठ के ऊतकों का प्रयोग किया जाता है। सर्जरी में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊ तकों के साथ रक्त वाहिकाओं का भी मिलान हो जाए , ताकि रक्त संचार बना रहे है। यह सर्जरी बड़ी होती है। डा. सोनकर ने बताया कि उनकी टीम में डा. सुरेन्द्र कुमार, डा. गीतिका व डा. सौम्या भी है। डा. अक्षय ने बताया कि इस तकनीक से अब तक जल्दी शुरू की गयी है।

सर्जरी के बाद खाली स्थान पर सिलकॉन जेल की थैली डाल दी जाती है –

सर्जिकल अपडेट में डा. अमित अग्रवाल ने बताया कि ब्रेस्ट कैंसर सर्जरी के बाद महिलाएं तनाव में आ जाती है, लोगों के बीच वह जाने से हिचकिचाती है, पर ब्रेस्ट प्रत्यारोपण में अब कारगर हो रहा है। उन्होंने बताया कि सर्जरी के बाद खाली स्थान पर सिलकॉन जेल की थैली डाल दी जाती है। इससे ब्रोस्ट का साइज बराबर हो जाता है आैर वह हीन भावना से बाहर निकल आती है। अपडेट में पीजीआई के डा. गौरव अग्रवाल ने बताया कि बगल की गिल्टियों को निकालते के बाद हाथ में सूजन आ जाती है। इस सूजन को दूर करने के लिए विदेशों में 60-70 हजार रुपयों का खर्च आता है, पर पीजीआई में विकसित तकनीक में मात्र एक सौ पचास रुपये का खर्च आता है। उन्होंने बताया कि यह तकनीक बेहद कारगर है।

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