लखनऊ। किडनी के मरीजों के लिये इलाज के साथ ही खानपान की अहम भूमिका होती है। बिना डॉक्टर और न्यूट्रीशयंस की परामर्श के खाने में बहुत सी चीजों का परहेज खुद ही करने लगते हैं, जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। खासकर दूध, दही और अण्डा आदि के न खाने से मरीजों में कुपोषण बढ़ने लगता है। यह जानकारी शनिवार को पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग द्वारा गोमतीनगर के एक होटल में आयोजित कांफ्रेंस के दौरान पत्रकार वार्ता में द सोसायटी आफ रीनल न्यूट्रीशन एण्ड मेटाबोल्जिम (एसआरएनएम) की सचिव डॉ. अनीता सक्सेना ने दी।
डॉ. सक्सेना बताती हैं कि खानपान में परहेज करें, लेकिन पूरी तरह से कोई भी चीज बंद नही करनी चाहिये। गुर्दा शरीर में अनावश्यक पदार्थों और गंदगी को बाहर करता है। गुर्दा मरीजों को प्रोटीन, सोडियम और पोटेशियम की मात्रा बिल्कुल नही बंद करनी चाहिये। शरीर के लिये यह तत्व जरूरी हैं। खानपान के लिये न्यूट्रीशियन की मदद लें। डायलिसिस न कराने वाले मरीजों को 0.6 ग्राम प्रति किलो वजन के हिसाब से प्रोटीन लेनी चाहिये। जबकि डायलिसिस कराने वाले मरीजों को 1.2 ग्राम प्रति किलो वजन के हिसाब से प्रोटीन लेनी चाहिये। दो दिवसीय एडवांस पाठ्यक्रम में भारत और नेपाल के करीब 130 नेफ्रोलॉजिस्ट शामिल हुये। डॉक्टरों ने गुर्दे की बीमारी के इलाज और खानपान पर अपने-अपने अनुभव साझा किये।
पद्मश्री अवार्डी और एसआरएनएम के अध्यक्ष व दिल्ली के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. एके भल्ला कहते हैं साल भर में दो लाख नये भारतीय गुर्दा की बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। जबकि 10 लोगों में से एक व्यक्ति गुर्दे की बीमारी की चपेट में है। इसके बावजूद देश में सिर्फ 1500 नेफ्रोलॉजिस्ट और 50 न्यूट्रीशंस हैं। इतने डॉक्टरों में पुराने मरीजों को देखना मुश्किल हो रहा है तो नये मरीजों को कैसे इलाज मिलेगा। सरकार को कड़े कदम उठाने की जरूरत है। गुर्दे की बीमारी के बचाव व इलाज के लिये डॉक्टर और संसाधन बढ़ाये। डॉ. भल्ला ने कहा कि रिफाइन खानपान की वजह से गुर्दे की बीमारी में इजाफा हो रहा है। इसके लिये प्रदूषण, पानी और खानपान जिम्मेदार है।
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