बिना आईडी प्रूफ नहीं मिलेगी पीजीआई ओपीडी फार्मेसी से दवा

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लखनऊ। पीजीआई संस्थान प्रशासन ने पीडी ( पोस्ट डिपाजिट) एकाउंट वाले मरीजों को ओपीडी फार्मेसी से दवा तभी मिलेगी जब वह फोटो युक्त आईडी प्रूफ की कापी काउंटर पर जमा करेंगे। साथ ही ओटीपी भेजा जाएगा, जिसके वेरीफिकेशन के बाद ही दवा दी जाएगी। ऐसी तमाम योजनाओं पर संस्थान प्रशासन तेजी से काम कर रहा है।
इस सिस्टम को लागू करने के पीछे पीडी एकाउंट के पैसे को सुरक्षित बनाना उद्देश्य है। संस्थान प्रशासन को जानकारी मिली थी कि पीडी एकाउंट के पैसे से मरीज के नाम पर दवा दी गयी लेकिन एकाउंट धारक मरीज ने शिकायत दर्ज करायी कि उसने दवा नहीं ली और एकाउंट से पैसा भी कट भी गया। इस मामले को संस्थान प्रशासन गंभीरता लेते हुए जांच करायी तो पता चला कि दवा देने की प्रक्रिया का पूरा पालन हुआ जिसमें दवा के पर्चे पर डाक्टर के हस्ताक्षऱ के अलावा अधिकार पत्र पर भी चिकित्सक के हस्ताक्षर है फिर मरीज ने दवा नहीं ली दवा दी गयी वह भी पूरी वैधानिक प्रक्रिया के साथ इस मामले के बाद संस्थान प्रशासन पीडी एकाउंट से दवा देने की प्रक्रिया को और सुरक्षित बनाने के लिए नया सिस्टम लागू किया है। जिसमें पहले से तय वैधानिक प्रक्रिया के साथ मरीज का आईडी प्रूफ लिया जाएगा । आईडी प्रूफ मरीज के पास होता जब मरीज खुद मूल प्रति के साथ फोटो कापी खुद के हस्ताक्षऱ के बाद देगा तो दवा मरीज को ही मिलेगी । मरीज यदि बच्चा है तो पिता या मां का आईडी प्रूफ देना होगा । संस्थान प्रशासन का कहना है कि जिन मरीजों ने कहा कि दवा नही लिया और दवा उनके मरीज के नाम दी गयी । एकाउंट से पैसा भी कट गया उनके पैसे की भर पायी करने के लिए भी संस्थान प्रशासन कोशिश कर रहा है। एचआरएफ प्रभारी एवं वरिष्ठ पर्चेज आफीसर अरविंद अग्रवाल ने कहा कि इस सिस्टम से मरीजों का एकाउंट और अधिक सुरक्षित होगा ।पीडी( पोस्ट डिपाजिट ) एकाउंट से दवा में हेरा-फेरी के मामले में एक दर्जन से डाटा इंट्री आपरेटर पर नजर रखी जा रही है। इनमें से कई को बाहर करने की तैयारी है। इनके खिलाफ ठोस सबूत मिलते ही बाहर कर दिया जाएगा। इसमें कुछ ओपीडी में तैनात डाटा इंट्री आपरेटर भी है। इस सूचना के बाद कर्मचारियों का कहना है कि जो गलत है उसे बाहर करना ही चाहिए। इस पूरे प्रकरण में विभागों में तैनात कर्मचारीयों को भी लिप्त होने की आशंका पर भी जांच चल रही है। दो मामले जो सामने आए उसमें सर्जरी के मरीज थे दवा दूसरे विभाग के संकाय सदस्य के हस्ताक्षऱ और सहमति पत्र से निकारी गयी इससे साबित होता है विभागों में तैनात कर्मचारी ओपीडी फार्मेसी में तैनात कर्मचारियों से मिल कर पीडी एकाउंट के पैसे से दवा निकलवाते थे।

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