लखनऊ। पारम्परिक विधियों जैसे की स्टेथोस्कोप (आला) से छाती की जांच से श्वास की बीमारियों को प्रारम्भिक अवस्था में पहचानना कठिन है। सांस की बीमारियों को प्रारम्भिक अवस्था में पहचानना आैर इलाज करना सम्भव है। यह बात पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डा. सूर्यकांत ने कही। वह मंगलवार को किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के कलाम सेंटर में दो दिवसीय स्पाइरोमेटरी टेक्नीशियन प्रशिक्षण कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे। इसका आयोजन पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग द्वारा इण्डियन चेस्ट सोसाइटी के तत्वावधान में किया गया।
डा. सूर्यकांत ने कहा कि देश में लगातार बढ़ती हुई श्वास के रोगियों के फेफड़ों की जांच के लिये कोई भी टेक्नीशियन के प्रशिक्षण का कोई भी कार्यक्रम किसी सरकारी या गैर सरकारी संस्था में नहीं चलाया जा रहा है। स्पाइरोमेटरी टेक्नीशियन प्रशिक्षण का यह पहला प्रयास है जो श्वास के बढ़ते हुए रोगियों को देखते हुए शुरू किया गया है। आज यह कार्यक्रम इंडियन चेस्ट सोसाइटी के तत्वाधान में देश के 12 विभिन्न सेंटरों पर आयोजित किया जाता है। उन्होंने कहा कि देश में लगभग 3 करोड़ सीओपीडी एवं 3 करोड़ दमा के मरीज हैं। बढ़ते हुए प्रदूषण के कारण श्वास के मरीजों की संख्या बढ़ रही है।
इस कार्याशाला में डा. राजेंद्र प्रसाद, डा. पीके शर्मा, डा. एस भट्टाचार्या, डा. वेद प्रकाश, डा. अजय कुमार वर्मा, डा. आनंद श्रीवास्तव आैर डा. दर्शन कुमार बजाज ने टेक्नीशियनों को प्रशिक्षण दिया।
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