लखनऊ। भेंगापन (तिरछा देखना) आंखों की नसों में विकृति के कारण हो सकता है। इस रोग में मरीज की निगाह एक स्थान पर नहीं टिकती। रोग के लक्षण बचपन में ही देखे जा सकते हैं, लेकिन कई बार आंखों में चोट लगने से भेंगापन आ जाता है। रोग का इलाज भी संभव है जरूरी है कि बचपन में ही उपचार करा लिया जाए। यह जानकारी किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की नेत्र रोग विभाग की डॉ. विनीता सिंह ने दी।
नेत्र रोग विभाग के तत्वावधान में भेंगेपन पर आयोजित सतत चिकित्सा कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष डॉ. विनीता सिंह ने बताया कि भेंगापन तीन प्रकार का होता है। एस्ट्रोपिया जिसमें बच्चा सीधे देखने की बजाय नाक की ओर देखने लगता है। दूसरा एक्सट्रोपिया जिसमें एक आंख बाहर की ओर जाती है और इसमें भी कॉर्निया सीधा नहीं देख पाता। यह रोग 6 वर्ष तक की उम्र के बच्चों में देखा जाता है। तीसरा हाईपरट्रोपिया जिसमें मरीज की आंख ऊपर की ओर देखती है। इसके मरीज बहुत कम ही होते हैं जो दुर्लभ प्रकार है। डॉ. सिंह ने बताया सर्जरी के बाद भी मरीज को चश्में से निजात नहीं मिल पाती। सर्जरी बहुत ही जटिल होती है क्योंकि इसमें आंखों का संदेश मस्तिष्क तक पहुंचाने वाले नसों के क्षतिग्रस्त होने का खतरा रहता है। सर्जरी कर आंखों की नसों को सीधा किया जाता है ताकि वह सीधी इमेज बना सकें।
इस अवसर पर नेत्र चिकित्सक डॉ. सिद्धार्थ ने बताया कि कई बार भेंगेपन का इलाज मरीज द्वारा लगातार प्रयास से भी हो जाता है। बाहर की ओर देखने वाली आंख को यदि लगातार भीतर की ओर किया जाए तो कुछ समय बाद वह अन्दर की ओर देखने लगती है। दवाओं के माध्यम से भी रोग ठीक हो सकता है लेकिन उसकी संभावना बहुत कम है। इस असपर पर डॉ. अरूण शर्मा लोगों से अपील की कि वह अपनी आंखों का ध्यान रखें और बच्चों की आंखों में किसी प्रकार की समस्या होने पर चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।
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