…और 7 महीने की मासूम फिर देखने लगी

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लखनऊ। खतरनाक वायरस रूबैला से पीड़ित सात महीने की बच्ची की आंखों की रोशनी बचाने में किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के नेत्र रोग विभाग ने डाक्टरों ने सफलता प्राप्त की है। इस मासूम की रूबैला वायरस से आंखों की कॉर्निया का आकार छोटी हो गयी थी। इस अलावा दोनों आंखों में मोतियाबिंद भी होने से नजर कमजोर होती जा रही थी।
नेत्र रोग विभाग के डा. सिद्धार्थ अग्रवाल का कहना है कि बाराबंकी निवासी मोहम्मद अबरार की बेटी रिदा फातिमा को आंखों से कुछ दिखाई नहीं पड़ा रहा था। परिजनों ने घबराकर स्थानीय अस्पतालों में दिखाया। यहां पर इलाज के बावजूद आंखों से कुछ भी नहीं दिख रहा था। परिजन परेशान होकर बेटी को लेकर केजीएमयू के नेत्र रोग विभाग पहुंचे। यहां पर विभाग के डॉ. सिद्धार्थ अग्रवाल ने आंखों की जांच करने के बाद इलाज शुरू किया।

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उन्होंने बताया कि जांच के बाद आंखों पर रूबैला वायरस के संक्रमण का पता चला। इसी वायरस के कारण कॉर्निया का आकार छोटा हो गया था। उन्होंने बताया कि शोध में देखा गया है कि सामान्य बच्चों में कॉर्निया 11 मिलीमीटर की होती है। रिदा फातिमा की आंख की कॉर्निया साढ़े सात मिलीमीटर की थी। दोनों आंखों में मोतियाबिंद था। उनका कहना है कि जांच के बाद डॉक्टरों ने सर्जरी की आवश्यकता बतायी। पहले चरण में दस जुलाई को दाहिनी और 16 जुलाई को बाई आंख की सर्जरी की गयी। डॉ. सिद्धार्थ ने बताया कि सर्जरी में आंखों में कस्टमाइज लेंस प्रत्यारोपित किये गये। उन्होंने बताया कि आंकड़ों के अनुसार यह बीमारी एक लाख में 14 बच्चों में पाई जाती है। दो आंखों की आधे घंटे का वक्त लगा। आठ से 10 हजार रुपये में पूरा इलाज हुआ। इसमें विभागाध्यक्ष डॉ. अपजीत कौर ने मदद की। वहीं प्राइवेट अस्पताल में 50 से 60 हजार रुपये का खर्च आता। ऑपरेशन टीम में डॉ. रीना शामिल हुई।

उन्होंने बताया कि रूबैल, खसरा समेत दूसरी गंभीर बीमारियों से बचाव के लिए बच्चों को एमएमआर का टीका लगाया जा रहा है। एक वर्ष तक के बच्चों को यह टीका लगता है। यही नहीं 10 से 18 साल तक की उम्र के किशोर टीका लगवा सकते है। टीकाकरण के बाद संक्रमण की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है।

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