लखनऊ। हर वर्ष 6 मई को “विश्व अस्थमा दिवस” मनाया जाता है, अस्थमा केवल एक दवा-निर्भर रोग नहीं है, बल्कि जीवनशैली और पोषण से भी इसका गहरा संबंध है। यह बात किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की सीनियर डाइटीशियन मृदुल विभा ने कही।
उन्होंने बताया कि अस्थमा एक दीर्घकालिक (क्रॉनिक) रोग है जो श्वसन नलिकाओं में सूजन और संकुचन का कारण बनता है, जिससे सांस लेना कठिन हो जाता है।
पोषण और अस्थमा का संबंध
एक संतुलित आहार न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है बल्कि फेफड़ों की कार्यक्षमता को भी बेहतर बनाता है। अस्थमा के रोगियों के लिए कुछ पोषक तत्व विशेष रूप से लाभकारी माने जाते हैं:
एंटीऑक्सीडेंट्स (विटामिन C, E, और बीटा-कैरोटीन): ये फेफड़ों में सूजन को कम करने में मदद करते हैं। फल और सब्जियाँ जैसे संतरा, गाजर, पालक आदि का सेवन बढ़ाएं।
ओमेगा-3 फैटी एसिड: यह सूजनरोधी गुणों से भरपूर होता है। मछली, अखरोट और अलसी के बीज इसके अच्छे स्रोत हैं।
विटामिन D: यह रोग प्रतिरोधक प्रणाली को संतुलित करता है। धूप में कुछ समय बिताना और विटामिन D युक्त खाद्य पदार्थ खाना लाभकारी है।
बचाव में मददगार आहार सुझाव
परिरक्षित और प्रोसेस्ड फूड्स से बचें, क्योंकि इनमें मौजूद रसायन अस्थमा को ट्रिगर कर सकते हैं।
दही और छाछ जैसी प्रोबायोटिक चीज़ें पाचन को सुधारने में सहायक होती हैं, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
पानी का पर्याप्त सेवन श्वसन नलिकाओं को हाइड्रेटेड रखता है।
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अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित करने और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में पोषण एक सशक्त औजार है। अस्थमा जागरूकता के साथ-साथ पोषण जागरूकता को भी बढ़ावा दें।