अस्पतालों को बेबी फ्रेंडली बना स्तनपान को देंगे बढ़ावा

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लखनऊ। प्रदेश में स्तनपान एवं शिशु अनुपूरक आहार को बढ़ावा देने के लिए हरसंभव कोशिश की जा रही है। इसके तहत सभी जिलों में मेडिकल ऑफिसर और स्वास्थ्यकर्मियों एएनएम, स्टाफ नर्स और आशा कार्यकर्ताओं का स्तनपान एवं अनुपूरक आहार संबन्धित व्यवहारों पर क्षमता वर्धन किया जा रहा है। इसके साथ ही सभी चिकित्सा इकाइयों को बेबी फ्रेंडली बनाते हुए स्तनपान के व्यवहारों को बढ़ावा देने की भी कोशिश चल रही है। चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने भी इस बारे में प्रदेश के सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों, मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों और महिला अस्पतालों की मुख्य चिकित्सा अधीक्षिका को पत्र जारी कर भी स्वास्थ्य इकाइयों में प्रत्येक स्तर पर स्तनपान संबन्धित व्यवहारों को सुदृढ़ करने का निर्देश दे रखा है। इसके लिए स्वास्थ्य इकाइयों पर सफल स्तनपान के दस कदमों के बारे में लेबर रूम के बाहर प्रदर्शन का भी निर्देश दिया गया है।

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स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए सबसे पहले यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि सभी स्टाफ नर्स, वार्ड ब्वाय/आया को स्तनपान सम्बन्धी संदेशों की सही जानकारी हो और वह सक्रिय रूप से इन व्यवहारों के बारे में परिवार को जानकारी दें।
इसके अलावा लेबर रूम में कार्यरत मेडिकल ऑफिसर और स्टाफ नर्स यह सुनिश्चित कराएं कि जन्म के तुरंत बाद बच्चे को माँ की छाती पर रखकर स्तनपान की शुरुआत लेबर रूम के अंदर ही कराएं। नवजात शिशु को माँ का पहला दूध मिलने के बाद ही उसे लेबर रूम से वार्ड में शिफ्ट किया जाये।

इस बारे में प्रसूता और उसके परिवार के सदस्यों को भी जागरूक किया जा रहा है। इसके अलावा नवजात और माँ को पोस्ट नेटल वार्ड में शिफ्ट करने के बाद स्टाफ नर्स द्वारा माँ को स्तनपान की पोजीशन, बच्चे का स्तन से जुड़ाव और माँ के दूध को निकालने की विधि में भी सहयोग किया जाये, ताकि कभी समस्या पैदा होने की स्थिति में परिवार वाले आवश्यक कदम उठा सकें। इसके साथ ही चिकित्सा अधीक्षक सप्ताह में कम से कम एक बार लेबर रूम एवं वार्ड में जाकर इन व्यवहारों का अनुश्रवण और मूल्यांकन करें ताकि सही तरीके से इसका पालन हो सके।

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान का कहना है कि शिशु के लिए स्तनपान अमृत के समान होता है। यह शिशु का मौलिक अधिकार भी है। माँ का दूध शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए बहुत ही जरूरी है। यह शिशु को निमोनिया, डायरिया और कुपोषण के जोखिम से भी बचाता है।

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