लखनऊ। अगर किसी हादसे में कान क्षतिग्रस्त हो गया है या जन्मजात कान की बनावट में विकार है, तो कतई परेशान होने की जरूरत नही हैं। प्लास्टिक सर्जरी में इसका इलाज सटीक इलाज उपलब्ध है। सर्जरी के जरिये विकृति वाले कान को सामान्य रूप से बनाया जा सकता है। यह जानकारी बुधवार को संजय गांधी पीजीआई में कान की विकृतियों पर आयोजित कार्यशाला में संस्थान के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. राजीव अग्रवाल ने दी।
इसके अलावा कार्यशाला में प्रो. अंकुर भटनागर, प्रो. अनुपमा सिंह के अलावा दिल्ली के प्रो. पीएस भण्डारी ने भी कान की विकृतियों के इलाज की नयी तक नीक की जानकारी दी। प्रो. अग्रवाल ने बताया कि बच्चों एवं बड़ों के कान में कई तरह की विकृतियां होती हैं। कुछ ,लोगों में यह दिक्कत जन्मजात होती है। कान की बनावट ठीक न होने से चेहरा की खूबसूरती प्रभावित होती है। दूसरी वजह चश्मा लगाने में दिक्कत के साथ ही सुनाई भी कम पड़ता है। ऐसे मरीजों का 100 फीसदी इलाज प्लास्टिक सर्जरी में उपलब्ध है।
पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉ. अंकुर भट्नागर बताते हैं कि यदि बच्चे में जन्मजात कान की बनावट में कोई दिक्कत है। कान नही है, कान में छेद नही है। ऐसी तमाम कान से जुड़ी विकृतियों से जुड़े बच्चों के परिजनों को चाहिये कि वह सात से नौ वर्ष के बीच में कान की सर्जरी करानी चाहिए, क्योंकि इस उम्र के बच्चों की हड्यिंा काफी मुलायम होती हैं। इससे कार्टीलेज बनाने में आसानी होती हैं। व्यस्कों में पसलियां की हड्डी कड़ी हो जाती हैं। इसलिये कान का आपरेशन सात से नौ वर्ष सबसे ज्यादा सर्जरी की दिल्ली के लोक नायक हास्पिटल के प्लास्टिक सर्जन प्रो. पीएस भण्डारी ने देश में सबसे ज्यादा सर्जरी की हैं। उन्होने कान की करीब 900 सर्जरी की हैं। पीजीआई में आयोजित कार्यशाला में उन्होंने देशभर से आये करीब 50 सीनियर व जूनियर डाक्टरों को कान बनाने के बारे में जानकारी दी।
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