लखनऊ। गुरुग्राम स्थित निजी अस्पताल में यूरोलॉजिकल बीमारी हाइपोस्पेडियास की आठ बार फेल हुई सर्जरी को किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के प्रमुख वरिष्ठ डा. एस एन कुरील एक बार में सफल सर्जरी कर दी। बच्चे का अभिभावक एक बार में हुई सफल सर्जरी होने के बाद बच्चे के ठीक होने पर बेहद खुश है। बच्चे को जन्मजात बीमारी हाइपोस्पेडियास थी। यह बीमारी 250 शिशुओं में एक को होने की आशंका रहती है।
प्रो. कुरील ने बुधवार को पत्रकार वार्ता में बताया कि परिजन वर्ष 2015 में बच्चे की बीमारी का पता चलने पर गुरुग्राम के अस्पताल ले गये। वहां के डाक्टरों ने ठीक होने का दावा करते हुए दो वर्ष में अंदर आठ बार सर्जरी कर दी। इस दौरान लगभग आठ लाख रुपया खर्च हो गया, लेकिन सर्जरी एक बार भी सफल नहीं हो सकी। इस पर वे जनवरी वर्ष 2019 में केजीएमयू किसी परिचित के कहने पर यहां पर डा. कुरील से जांच करायी। डा. कुरील ने 19 अगस्त को सर्जरी कर दी। पहली बार में सफल हुई इस सर्जरी में लगभग 85 हजार रुपया खर्च हुआ।
सर्जरी करने वाली टीम में डा. कुरील के साथ डॉ. अर्चिका गुप्ता, डॉ. राहुल कुमार, एनेस्थीसिया से डॉ. विनीता सिंह की टीम व ओटी सिस्टर वंदना की टीम मौजूद थी। डा. कुरील ने बताया कि बच्चा जन्मजात बीमारी हाइपोस्पेडियास से जूझ रहा था। उसका लिंग जन्म से ही धनुष की तरह मुड़ा था। पेशाब का रास्ता लिंग की ओर न होकर अंडकोष की ओर था। उन्होंने बताया कि इस बीमारी की कई कारण हो सकते है। इसमें एक बड़ी पेस्टीसाइडयुक्त खानपान है। स्ट्रोजन का प्रयोग, गर्भ ठहरने के बाद लगातार गर्भनिरोधक गोली खाना भी बीमारी की वजहें हैं।
प्रो. कुरील ने बताया कि लिंग की चार प्रमुख नसें दो डर्सो लैटरल और दो डर्सो मीडियल होतर है। जांच में पता चला कि मुख्य रूप से डर्सो मिडियल की एक नस पूरी तरह सुरक्षित है। उसकी सहायक नसें भी ठीक मिलीं। उसी नस के आधार पर सर्जरी की गई। पेशाब के अधूरे रास्ते को सर्जरी से पूरा किया गया। उम्र के साथ ही लिंग का विकास होता रहेगा।
प्रो. कुरील का दावा है कि वर्ष 2015 से अब तक हाइपोस्पेडियास के 150 से ज्यादा सफल ऑपरेशन कर चुके हैं। हाइपोस्पेडियास के मामले में अंतरराष्ट्रीय जर्नल में सफलता की दर करीब 10 से 60 फीसदी है, लेकिन प्रो. कुरील इस बीमारी में नसों को खोजने के विशेषज्ञ माने जाते हैं। नसों की खोज को लेकर उनकी शोध रिपोर्ट इंटरनेशनल अमेरिकन जर्नल 2015 में छप चुकी है।
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