लखनऊ। हार्ट के वॉल्व में खराबी का सही स्थिति पता लगाने में थ्री डी ईको जांच की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह जांच अल्ट्रासाउंड की तरह की जाती है।
जांच में विशेष यह होता है कि वॉल्व के चारों तरफ व आंतरिक भाग में बन रही खराबी का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा बच्चों में लगातार सर्दी-जुकाम व जोड़ों में दर्द को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यह हार्ट के वॉल्व में खराबी के लक्षण हो सकते हैं। यह जानकारी लोहिया संस्थान में कॉर्डियोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. भुवन चन्द्र तिवारी ने शनिवार को लोहिया संस्थान के प्रशासनिक भवन के प्रेक्षागृह में संरचनात्मक कार्डियक डिजीज में 3डी ईको जांच पर कार्यशाला को संबोधित करते हुए दी। कार्यशाला का शुभारंभ संस्थान के निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने किया।
कॉर्डियोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. भुवन चन्द्र तिवारी ने कहा कि बच्चों में वॉल्व से जुड़ी बीमारी का खतरा ज्यादा बना रहता है। उन्होंने कहा कि आंकड़ों को देखा जाए तो एक हजार में दो शिशु हार्ट वॉल्व में खराबी के साथ जन्म लेते हैं। इसके अलावा देखा गया है कि सर्दी-जुकाम और गले में संक्रमण के कारण भी काफी बच्चों के हार्ट वॉल्व में खराबी आ जाती है। पांच से 15 वर्ष के बच्चों में यह समस्या ज्यादा देखी गयी है। इसमें गले में खरास, सर्दी जुकाम के बाद जोड़ों में दर्द के लक्षण शुरू होते है। समय पर पहचान व सही इलाज न मिलने से समस्या गंभीर हो जाती है। वॉल्व पर बैक्टीरिया हमला कर देता है। 20 से 30 साल की उम्र तक पहुंचता है, तो वॉल्व पूरी तरह से खराब हो जाता है। ऐसे में वॉल्व के बदलने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं रहता है।
डॉ. भुवन चन्द्र ने बताया कि 3डी ईको जांच से वॉल्व को आंतरिक भाग तक देखा जा सकता है। वॉल्व की बनावट, उसमें सिकुड़न या क्षेत्रफल को भी देखकर बीमारी की जटिलता का आंकलन किया जा सकता है। कई बार वॉल्व में सुराख हो जाता है, जिससे शरीर को पर्याप्त ब्लड सप्लाई नहीं मिलती है। 3डी ईको से वॉल्व की गड़बड़ी का पता लगातार तत्काल इलाज शुरू किया जा सकता है।
इलाज के देरी से मरीज की जान पर भी बन सकती है। इस मौके पर रेजिडेंट डॉक्टर, तकनीशियन को दिल की संरचनात्मक बीमारियों के निदान में इस्तेमाल होने वाली तीन-आयामी इकोकार्डियोग्राफी तकनीक की जानकारी दी गयी।
मुख्य अतिथि एवं वक्ता के रूप में बंगलरू स्थित नारायणा इंस्टीट्यूट ऑफ कॉर्डियक साइंसेज के डॉ. सतीश सी. गोविंद ने 3डी इको के अलग- अलग पर विस्तार से व्याख्यान दिया। डॉ. आशीष झा ने बताया कि 3डी ईको जांच को हार्ट डिजीज में अधिक प्रयोग किया जाए।,ताकि दिल के मरीजों को समय पर बेहतर इलाज मिल सके।












