लखनऊ। वर्तमान परिवेश में हर किसी की इच्छाएं कहीं ना कहीं ज्यादा बढ़ रही है,साथ ही छोटी-छोटी बातों को दिल से लगा लेते हैं या उनका इगो हर्ट होने लगता है। आंकड़ों को देखा जाए, तो संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं। इस कारण लोगों में फ्रस्ट्रेशन डिप्रेशन आत्महत्या जैसी घटनाओं का कारण बन रहा है।
लोगों के मन में आत्महत्या जैसे विचार आ रहे हैं। हिम्मत-हौसले और परिवार का साथ मानसिक बीमारियों को हराने में मदद कर रहा है। यह बातें किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय मानसिक स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख डॉ. विवेक अग्रवाल ने मंगलवार को विभाग के प्रेक्षागृह में आत्महत्या रोकथाम दिवस पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए कही। डॉ. विवेक अग्रवाल ने कहा कि आत्महत्या से पहले व्यक्ति अपनी इच्छा को प्रकट करता है। अपने दोस्त व परिवार के सदस्यों से अपनी पीड़ा बताता है।
इन लक्षणों की समय पर पहचान जरूरी है। ताकि समय पर घटना को रोका जा सके। डॉ. मोहिता जोशी ने कहा कि मानसिक रूप से टूट चुके लोगों को भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है। इलाज व समय पर काउंसलिंग से बीमारी को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है।
डॉ. सुरजीत कुमार कर ने कहा कि दवाओं से मानसिक रोगों का सटीक इलाज है। लिहाजा इलाज करने से घबराना नहीं चाहिए। मानसिक रोगी इलाज के साथ सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लें। डॉ. आदर्श त्रिपाठी ने कहा कि आत्महत्या करना किसी समस्या का हल नहीं है। बल्कि यह परिवार के लिए दुखदाई होता है। आत्महत्या करने वाले अपनी परेशानी परिवार पर डाल देता है।
जबकि उम्मीद नहीं खोनी चाहिए। ऐसी कोई परेशानी नहीं जिसका हल न हो। लिहाजा परेशानी से ज्यादा उसके निदान के बारे में विचार करने की जरूरत है। डॉक्टर की सलाह पर पूरा इलाज करें। काउंसलिंग कराएं। परिवार के लोग पीड़ित का सपोर्ट करें। समाज का साथ भी ऐसे लोगों के लिए जरूरी होता है। कार्यक्रम में डॉ. बंडना गुप्ता, डॉ. सुरजीत कुमार, डॉ. रश्मि शुक्ला और डॉ. मोहित जोशी मौजूद रहे।