लोहिया संस्थान
लखनऊ। यदि किसी ने शरीर पर टैटू गुदवाया है, तो एक वर्ष तक ब्लड डोनेशन नहीं कर सकता है, क्यांेकि निडिल स्किन पर चुभो कर टैटू बनाया जाता है। ऐसे में एचआईवी व हेपेटाइटिस जैसे संक्रमण का खतरा बन जाता है। यह बात किं ग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की प्रमुख डा. तूलिका चंद्रा ने शुक्रवार को लोहिया संस्थान में आई डी नेट मशीन का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर आयोजित चिकित्सा संगोष्ठी में कही। संगोष्ठी का शुभारम्भ संस्थान के निदेशक डा. सीएम सिंह ने कि या। निदेशक डा. सीएम सिंह ने कहा कि न्यूक्लियर एसिड टेस्ट (नेट) टेस्ट ब्लड सुरक्षित रहता है। इस टेस्ट से दस 15 दिन के भीतर ब्लड में बने संक्रमण की जानकारी की जा सकती है। संस्थान में मरीजों को नैट परखा ब्लड मरीजों को दिया जा रहा है।
संगोष्ठी में डा. तूलिका चंद्रा ने कहा कि एक्यूपंक्चर कराने वालों को कम से कम एक वर्ष तक ब्लड डोनेशन से बचना चाहिए। इसके अलावा जिन लोगों को ब्लड चढ़ाया गया हो तो वह भी छह महीने तक ब्लड डोनेशन नहीं कर सकते है। क्योंकि हेपेटाइटिस ए, बी, सी व एचआई वी वायरस एक दूसरे के शरीर में दाखिल हो सकते है। लोहिया संस्थान के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के प्रमुख डा. सुब्रात चंद्रा ने कहा कि ब्लड डोनेशन से पहले डोनर के केस हिस्ट्री लेनी चाहिए। इससे किसी हद तक संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि विदेश में छह महीने से ज्यादा वक्त गुजार चुके लोगों को स्वैच्छिक ब्लड डोनेशन कम से कम तीन वर्ष तक नहीं करना चाहिए।
कानपुर के जीएसवीएम में ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की प्रमुख डा. लुबना खान ने कहा कि बहुत से अस्पतालों में अभी तक एलाइजा तकनीक से जांच हो रही है। इन संस्थानों के ब्लड बैंकों को अपडेट की आवश्यकता है। कार्यक्रम में एनएचएम की निदेशक डा. पिंकी हर सम्भव मदद करने का भरोया दिया। कार्यक्रम में अन्य वरिष्ठडाक्टर मौजूद थे।