लखनऊ। लेजर तकनीक अत्याधुनिक चिकित्सा है। यह एनल फिस्टुला पर कारगर भी होती है, लेकिन इसके साइड इफेक्ट भी होते है। इसके अलावा यह भी आवश्यक नहीं कि सभी मरीजों पर लेजर तकनीक से इलाज किया जाए।यह डाक्टर ही निर्णय लेता है कि बीमारी के अनुसार कौन सी इलाज की विधि सफल रहेगी। यह बात विशेषज्ञ सर्जन डा. अरशद ने किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के जनरल सर्जरी विभाग के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन दी।
डा. अरशद ने बताया कि बदलती दिनचर्या के कारण लोगों में एनल फिस्टुला बीमारी भी बढ़ रही है। गलत खानपान, फाइबर व पानी की कमी के अलावा के अलावा कब्ज बने रहने से भी यह बीमारी होने की आशंका ज्यादा रहती है। महिलाओं में तीस प्रतिशत तो पुरुषों में सत्तर प्रतिशत यह बीमारी होती है। मलद्वार के पास एनल ग्रन्थि पर फोड़ा बन जाता है, जिसमें मवाद आता रहता है।
यह जल्द ठीक नहीं होता है। ज्यादातर लोग पहले झोलाछाप डाक्टर से इलाज कराते है। उसके बाद केस बिगड़ने पर विशेषज्ञ डाक्टर के पास जाते है। उन्होंने बताया आजकल लोगों में लेजर तकनीक से जल्द इलाज कराना चाहते है, परन्तु आवश्यक नहीं कि सभी मरीजों में लेजर तकनीक कारगर हो। कार्यशाला में सर्जरी की आधुनिक तकनीक से सर्जरी की जानकारी डा. अक्षय आनंद, डा. फराज अहमद, डा. अजय पाल व डा. रवि कुमार ने दी। इसके अलावा कार्यशाला में डा. सौम्या ने पेट की टीबी, डा. अंशुमन ने पित्त की थैली की सर्जरी की तकनीक की जानकारी दी।