लखनऊ। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति भारतीय पुरातन चिकित्सा पद्धति है। इस पद्धति में बीमारियों का इलाज उन्हीं तत्वों से होता है, जिनसे शरीर बनता है। यदि मनुष्य का कोई भी तत्व प्रभावी होता है। वह बीमार पडने लगता है। उस दिशा में इन तत्वों से उपचार लेना अधिक सहजातीय एवं प्राकृतिक होता है। यह चिकित्सा शास्त्र औषधि विहीन चिकित्साशास्त्र है। इसमें किसी भी प्रकार की औषधियों का सेवन नहीं किया जाता है। यह बातें विश्व प्राकृतिक दिवस पर सोमवार को राज्य आयुष सोसाइटी में आयोजित संगोष्ठी में डा. अमरजीत यादव ने कही।
आयुष सोसाइटी के सभागार में आयोजित संगोष्ठी में डा. यादव ने कहा कि ऐसे लोग जो शारिरिक श्रम नहीं करते है। ऐसे लोगों के शरीर में रोग पैदा करने वाले रसायन जमा होने लगते है, जिससे उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होन लगती है। इससे गैस, कोलेस्ट्राल, कब्ज, डिप्रेशन(मानसिक अवसाद), हाई बीपी की समस्याऐं हो सकती है। ऐसे में यदि रोजान प्राकृतिक के नियमों के अनुसार चला जाये तो रोगों की संभावना कम हो जाती है।
मिशन निदेशक आरएन बाजपेयी ने बताया कि आज के परिवेश में वायु मंडल के प्रदूषण में वृद्वि रोगों का एक बहुत बडा कारण बन चुका है जैसे कि श्वास संबधी समस्याएं , कैन्सर इत्यादि रोगों की दिन प्रतिदिन वृद्वि होती जा रही है। प्राकृतिक चिकित्सा में शरीर में आने वाले विषैले पदार्थों का निष्कासन इस बढती समस्या का बहुत बडा साधन है।
संगोष्ठी में मिशन के कार्यक्रम प्रबंधक अरविन्द, परामर्शदाता डा. राजेश पटेल, डा. अब्दुल वहीद, डा. सुनील कुमार समेत कई अधिकरीगण मौजूद थे।
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