जटिल सर्जरी कर ठीक किया शिशु की आहारनाल

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लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के बाल शल्य विभाग विभाग के विशेषज्ञों की टीम ने शिशु की अधूरी आहारनाल को पूरा बनाकर नया जीवन दिया। विशेषज्ञों की टीम ने तीन महीने में तीन सर्जरी करके किया गया। सर्जरी की खास बात यह थी कि आमाशय को खींच कर बढ़ाने के बजाय उसके पिछले हिस्से के किनारे स्टेपलर करके नई नलिका विकसित की गई। फिर उसे जोड़ा गया।

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विशेषज्ञ डाक्टर जिलेदार रावत ने बताया कि सिद्धार्थनगर निवासी किसान मेराज अहमद की पत्नी निशा को 21 मार्च को प्रसव होने के बाद नवजात शिशु दूध नहीं पिया। अभिभावकों ने जबरन दो घूंट दूध डाला गया, तो उल्टी हो गई। स्थानीय डाक्टरों ने प्राथमिक जांच के आधार पर तत्काल केजीएमयू के बाल रोग विभाग रेफर कर दिया। यहां डा. रावत ने जांच की तो बच्चे की आहार नाल सिर्फ गले तक विकसित होकर आयी थी। उसकी बिगड़ती हालत को देखते हुए तत्काल भर्ती करके पहला सर्जरी किया गया। उन्होंने गले के पास आपरेशन करके अविकसित आहार नाल को ट्यूब के जरिए (इसोफेगास्टमी) बाहर निकाल दिया गया, ताकि लार बाहर निकलती रहे और फेफड़े में किसी तरह का संक्रमण न हो पाए। इसके साथ ही आमाशय में एक नली (गैस्ट्रास्टमी )डालकर उसे बाहर निकाल दिया गया।

इस नली से शिशु को दूध पिलाया जाता रहा। फिर तीन अप्रैल को शिशु को भर्ती करके उसके आमाशय के पिछले हिस्से को लेकर एक ट्यूब बनाई गई। इसमें यह सावधानी बरती गई कि आमाशय जस का तस काम करता रहे। इस ट्यूब को गर्दन तक लाया गया। इसे विशेष तकनीक से स्टेपल किया गया था कि आमाशय अपनी जगह काम करता रहे और बगल में नयी नलिका विकसित हो जाए। सब कुछ ठीक होने के बाद एक मई को तीसरी सर्जरी की गयी। इसमें आमाशय से विकसित की गई नलिका को गले के पास बाहर निकली गई नलिका से जोड़ा गया। अब यह बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ्य है। सभी चीजें खा रहा है। उसे शुक्रवार को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है। इस तीनों सर्जरी में परिजनों को करीब 50 हजार रुपया खर्च करना पड़ा।

टीम में डा. जेडी रावत के साथ डा. सुधीर सिंह, डा. विपुल, एनेस्थिसिया की डा. अनिता मलिक डा. प्रेमराज, डा. सुरेश वर्मा एवं नर्सिंग स्टाफ में वंदना, अंजु, पुष्पा का विशेष योगदान रहा। उन्होंने बताया कि इस सर्जरी में खास बात यह है कि शिशु काफी कमजोर था। इस वजह से डेढ साल तक इंतजार किया गया। आमाशय को खींच कर बढ़ाने केबजाय उसके पिछले हिस्से के किनारे स्टेपलर करके नई नलिका विकसित की गई। फिर उसे जोड़ा गया।

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