लखनऊ। इडियन चेस्ट सोसाइटी और किं ग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय रेस्पाइरेटरी मेडिसिन विभाग के तत्वाधान में विश्व अस्थमा दिवस के अवसर पर लोहिया पार्क अस्थमा जागरुकता एवं परामर्श शिविर का आयोजन किया गया। चौक स्थित पार्क में आयोजित इस शिविर में कई लोगों की फेफड़े की कार्य क्षमता की जांच कराकर यह पता किया कि उनके फेफड़े कितने स्वस्थ है। विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने लोगों को अस्थमा रोग के बारे में जानकारी दी।
रेस्पाइरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष एवं इंडियन कालेज ऑफ एलर्जी अस्थमा एवं एप्लाइड इ यूनोलोजी के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि दमा की बीमारी बचपन में शुरू होती है। बच्चों में दमा के लक्षण जैसे पसली चलना, सर्दी, जुखाम, नाक बहना, संास फूलना, हाफना, खांसी आना, बच्चे का दुबला पतला एवं कमजोर होना जैसे लक्षण आगे चलकर दमा का रूप ले लेते हैं। कई बार यह रोग आनुवंाशिक (पारिवारिक) भी होता है। इस बीमारी मे बच्चों की संास की नलियां अति संवेदनशील हो जाती है। इसके अलावा धूल, धुआं तथा पराग कण आदि के स पर्क में आने पर उनकी सांस की नलियां सिकुड़ जाती है।
यही अस्थमा की शुरुआत है। आज 100 में से 15 बच्चें को दमा की शिकायत है। इसका सबसे बड़ा कारण खान-पान में बदलाव तथा अनियमित दिनचर्या। कुछ बच्चे अपने साथ टैडीबियर रखते हैं उनसे भी रोग का खतरा होता है। अन्य कारणों में तकियों में सेमल की रुई के इस्तेमाल, घर में कुत्ते, बिल्ली घर में लगे जाले, पुरानी किताबे, कूलर की घास, बीड़ी के धूएं से और धूल मिट्टी से, डियोडरेंट से, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती का इस्तेमाल अस्थमा का कारण बन सकते हैं।
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