अस्थमा के मरीज इंन्हेलर से डरे नहीं, करते रहे प्रयोग

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लखनऊ। बदलते परिवेश में आजकल बच्चों में अस्थमा रोग तेजी से बढ़ रहा है। अगर शोध के आंकड़ों को देखा जाए , तो यह पांच से 11 वर्ष की आयु के करीब 15 प्रतिशत बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हैं। बच्चों में बढ़ती इस बीमारी की मुख्य वजह गर्भवस्था के दौरान स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही है। देखा गया है कि गर्भवती में पौष्टिक आहार की कमी से अक्सर शिशु प्री मेच्योर या कम वजन का होता है, जिससे उसमें अस्थमा होने की आशंका बढ़ जाती है।

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विश्व अस्थमा दिवस पर यह जानकारी केजीएमयू के पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसीन के प्रमुख प्रो. वेद प्रकाश ने दी। उन्होंने बताया कि गर्भ में अंगों का विकास धीरे-धीरे होता रहा है, लेकिन अंत में फेफड़ा जन्म के बाद ही पूरी तरह से विकसित होता है। ऐसे में प्री -मेच्योर बच्चा पैदा होने पर उसका फेफड़ा पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता और उसे श्वसन सम्बधी जन्मजात दिक्कते हो जाते हैं।

प्रो. वेद ने कहा कि महिलाओं में गर्भवस्था की जटिलताओं के चलते डाक्टर भी सिजेरियन प्रसव को ज्यादा सुरक्षित मानती हैं वहीं कुछ महिलाएं भी प्रसव पीड़ा से बचने के लिए आपरेशन के विकल्प को बेहतर मानती हैं। सिजेरियन के केस में कई बार शिशु के फेफड़े सही से विकसित नहीं हो पाते। ऐसे में उन्हें विकसित करने के लिए स्टेरॉयड दिया जाता है। इन शिशुओं के फेफड़े विकसित तो हो जाते हैं, लेकिन सामान्य बच्चों की अपेक्षा कमजोर रहते हैं। इन बच्चों को अस्थमा होने की आशंका ज्यादा रहती है।

वरिष्ठ आैर विशेषज्ञ डा. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि देश में अस्थमा से पीड़ित मरीजों की सं या बढ़ती जा रही है। प्रदेश में करीब 30 लाख इसकी चपेट में हैं। इसमें दवा जीवन भर चलती है। उन्होंने बताया कि इस बीमारी का बेहतर इलाज इन्हेलर है लेकिन लोगों में यह भ्रांतिया हैं कि इसका प्रयोग अस्थमा के अंत में किया जाता है। जब कि शुरू से इन्हेंलर का प्रयोग बेहतर रहता है। योग से भी इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। धूल-मिट्टी में खेलने वाले बच्चों की अपेक्षा धूल मिट्टी में नहीं खेलने वाले बच्चे अस्थमा की चपेट में जल्दी आ जाते हैं।

डा. राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि इन्हेलर अस्थमा का सबसे बेहतर इलाज है। इसके प्रयोग से दवा सीधे फेफड़े तक पहुंचती है। इससे दवा का प्रभाव शरीर के अन्य हिस्सों में नहीं पड़ता है। उन्होंने कहा कि 80 प्रतिशत लोग इन्हेलर का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं करते है, केवल 20 प्रतिशत मरीज ही इन्हेलर का सही प्रयोग कर पाते हैं। उन्होंने सलाह दी कि मरीज जब डॉक्टर से परामर्श लेने जाए। इन्हेलर साथ ले जायें और हर बार इसके इस्तेमाल का तरीका पूछे और डॉक्टर की भी जिम्मेदारी है कि वह मरीज को इसकी जानकारी दे।

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