लखनऊ। बढ़ती उम्र के साथ सभी अन्य जांच के अलावा वर्ष में एक बार यूरीन (पेशाब) की जांच अवश्य करानी चाहिए। खास कर अगर मरीज डायबिटीज से पीड़ित है तो उसे डाक्टर से परामर्श कर जरूर कराना चाहिए। यह जानकारी संजय गांधी पीजीआई के डा. नारायण प्रसाद ने पीजीआई के नेफ्रोलाजी विभाग द्वारा गोमतीनगर के एक होटल में आयोजित कांफ्रेंस का दूसरा दिन दी। काफ्रेंस में भारत के साथ ही नेपाल से आए नेफ्रोलॉजिस्ट, फिजीशियन और डायटीशियन समेत करीब 220 विशेषज्ञों लोगों ने हिस्सा लिया। इस दौरान कुपोषण, कार्डियोवस्कुलर डिजीज, यूरेमिक्स टॉक्सिन, रीनल स्टोन डिजीज आदि पर चर्चा की गई।
डा. प्रसाद ने बताया कि जांच में खास तौर पर यह देखें कि प्रोटीन या लाल रक्तकण तो नहीं आ रहे हैं। इसके अलावा ब्लड यूरिया और सीरम क्रिएटिनाइन की स्थिति देखना चाहिए। किसी मरीज को किडनी संबंधी परेशानी है तो उसे चौलाई, पालक, सरसों के पत्ते, सूखे मेवे, सूखे मटर, राजमा, कटहल खाने से बचना चाहिए। कोलकाता के डॉ. प्रीतमसेन ने कहा कि 80 फीसदी लोगों को समय से किडनी की बीमारी का पता नहीं लग पाता है। हर साल करीब दो लाख नए किडनी के मरीज बढ़ रहे हैं, जबकि सिर्फ डेढ़ लाख मरीजों की डायलिसिस हो पाती है। इसमें आठ हजार मरीजों में ट्रांसप्लांट और इतने ही मरीजों की कॉन्टिनुअस एम्बुलैटरी पेरिटोनियल डायलिसिस (सीएपीडी) हो पाती है। इस तरह देखा जाए तो करीब 90 फीसदी से ज्यादा मरीजों के सामने इलाज का संकट रहता है।
नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अमित गुप्ता ने बताया कि कुछ समय पहले सीएपीडी शुरू की गई थी। इसके जरिये किडनी के मरीज 15 साल तक जिंदा रह सकते हैं। एसजीपीजीआई में 225 मरीजों पर हुए रिसर्च में यह साबित हो चुका है। इसके तहत मरीज के पेट में करीब 10 सेमी की कैथेटर ट्यूब लगा दी जाती है। इससे मरीज के पेट में पेरीटोनियल डायलिसिस फ्लूड (पीडीएफ) डाला जाता, जो छह घंटे पेट के अंदर रहता है और फिर इसे बाहर निकाल दिया जाता है। इस प्रक्रिया से मरीज के शरीर में मौजूद टॉक्सिन व यूरिया पानी के साथ फिल्टर होकर निकलता रहता है। इस पर करीब ढाई से तीन हजार रुपया खर्च होता है।
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