सीएमओ नहीं कर सकते डॉक्टर का तबादला

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लखनऊ – डॉक्टर्स को अपने जनपद में रहने का मौका मिलेगा साथ ही उनका तबादला भी अब सी.एम.ओ. नहीं कर सकेंगे.इस योजना से सूबे की फर्स्ट रेफरल यूनिट्स को सक्रिय कर मातृ व शिशु मृत्यु दर में कमी लाने का प्रयास किया जा सकेगा. यह जानकारी दी प्रमुख सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य प्रशांत त्रिवेदी ने. प्रमुख सचिव मंगलवार को चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण निदेशालय, राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की ओर से फर्स्ट रेफरल यूनिटको एलएसएएस-इमौक प्रशिक्षित डॉक्टर्स द्वारा सक्रिय बनाने’हेतुएक दिवसीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे.कार्यशाला के दौरान प्रदेशभर के लगभग 125 एलएसएएस-इमौकप्रशिक्षित डॉक्टर्स ने हिस्सा लेकर खुद के द्वारा चयनित एफ.आर.यू.को सक्रिय करने का संकल्प लिया.

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कार्यशालाकी शुरुआत निदेशक, मातृशिशुकल्याणडॉक्टरसुरेश चंद्रा ने की. उन्होंने सभी को धन्यवाद देते हुए प्रमुख सचिव प्रशांत त्रिवेदीको दीप प्रज्जवलित करने के आमंत्रित किया. दीप प्रज्जवलन के बाद प्रमुख सचिव प्रशांत त्रिवेदी ने कहा कि इस कार्यक्रम के तहत अब डॉक्टर कोअपने गृह जनपद में रहने का मौका दिया रहा है. डॉक्टर का तबादला मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी नहीं कर सकते हैं. इसके लिए जल्द ही शासनादेश जारी होने जा रहा है. उन्होंने हाल में उपस्थित डॉक्टर्स से अपील कि सभी लोग प्रमुखता के साथ अपने फर्स्ट रेफरल यूनिट ( एफ.आर.यू.) का चयन कर उसको सक्रिय बनाएं.

पंकज कुमार, मिशन निदेशक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने आयोजन में शामिल हुए डॉक्टर्स से सवाल आमंत्रित किये. सवालों के बीच उन्होंने आश्वस्त किया कि एफ.आर.यू. में डॉक्टर की सुरक्षा के लिए जनपद के संबंधित अधिकारियों को निर्देशित करेंगे. इसके साथ ही उन्होंने डॉक्टर्स से अपील कि आप लोग एफ.आर.यू. को सक्रिय करते हुए गुणवत्तापरक सेवा प्रदान करिये.

वसंत कुमार, अधिशाषी निदेशक, उत्तर प्रदेश तकनीक सहयोग इकाई ने कहा कि इस कार्यक्रम के पीछे आप लोगों को गुणवत्तापरक प्रसव कराने हेतु बेहतर माहौल देना है. एफ.आर.यू. चयन प्रकिया वरिष्ठता के आधार पर दी जा रही है.साथ ही दंपत्ति डॉक्टर को एक ही स्वास्थ्य इकाई चयन करने की सुविधा दी जाएगी. प्रस्तुति के दौरान उन्होंने पूरे परामर्श सत्र की रूपरेखा भी प्रस्तुत की. इस मौके पर डॉक्टर नीना गुप्ता, महानिदेशक, परिवार कल्याण और पद्माकर, महानिदेशक चिकित्साआदि मौजूद रहे.

कल्यानपुर सी.एच.सी., (एफआरयू),कानपुर का चयन हुआ सर्वप्रथम

प्रशिक्षित डॉक्टरों लाइफ सेविंग एनेस्थेटिक स्किल्स (एल.एस.ए.एस.) और इमरजेंसी ऑब्स्टेट्रिक केयर (ईमौक) के संयुक्त चयन में सबसे पहले कानपुर नगर के सी.एच.सी. कल्यानपुर का नाम आया. इस केंद्र के लिए बतौर ईमौक डॉक्टर नीलिमा और एल.एस.ए.एस. के रूप में डॉक्टर शशिकांत अपनी सहमति दी.दोनों डॉक्टर्स को प्रमुख सचिव प्रशांत त्रिवेदी ने प्रमाण पत्र प्रदान किये. इसके बादसी.एच.सी. मोहनलालगंज के लिए डॉ. कनिका चित्रांसी और डॉ. राजीव सिंह, सी.एच.सी. सरोजनीनगर के लिए डॉ. रेनू सिंह और डॉ. प्रदीप कुमार त्रिपाठी समेत तमाम एफ.आर.यू. को लेकर डॉक्टरों ने अपनी सहमति दी.

क्या है योजना ?

उत्तर प्रदेश सरकार ब्लॉक स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे गुणवत्ता वितरण और सी-सेक्शन सेवाओं को सक्रिय व मजबूत बनाने के नयी रणनीतिकी शुरुआत कर रही है। फर्स्ट रेफरल यूनिट (एफआरयू) में पर्याप्त प्रशिक्षित डॉक्टरों की उपलब्धता से जटिलताओं का बेहतर प्रबंधन किया जायेगा ताकि प्रसव संबंधित जटिलताओं व मातृ व शिशुमृत्यु दर में कमी आ सके |इस नए मॉडल से पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित डॉक्टरों (लाइफ सेविंग एनेस्थेटिक स्किल्स (एलएसएएस) और इमरजेंसी ऑब्स्टेट्रिक केयर (ईमौक) को सुनिश्चित करने, जटिलताओं के बेहतर प्रबंधन के लिए, 107 ईमौक प्रशिक्षित एमबीबीएस डॉक्टर व 108 एलएसएएस प्रशिक्षित एमबीबीएस डॉक्टरों की जोड़ी निष्क्रिय फर्स्ट रेफरल यूनिट को पूरी तरह से बदल देंगी।

इस योजना के तहत, डॉक्टर अपने सहयोगी के साथ-साथ स्वास्थ्य सुविधा का भी चयन कर सकते हैं ताकि वे अपने सहयोगी के साथ पूरी नौकरी की अवधि में सुविधा केंद्र में सेवा पहुंचा सके लेकिन शुरुआत में यह सहयोगी जोड़ी और स्वास्थ्य सुविधा का आवंटन अगले 5 वर्षों के लिए तय किया जाएगा। डॉक्टरों को अपने गृह जिलों को भी चुनने का मौका मिलेगा। सहयोगियों और स्टाफ नर्स व अन्य तकनीशियनों को प्रत्येक सी-सेक्शन के लिए प्रोत्साहन मिलेगा जो वे अपनी सुविधा केंद्र पर करते हैं और प्रत्येक सहयोगी को उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करने के लिए 6 महीने के लिए जिला अस्पताल के विशेषज्ञ सहयोगी के साथ जोड़ा जाएगा।

यूपी में एफ.आर.यू. की हकीकत

उत्तर प्रदेश में 826 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सिर्फ 305 को पहली रेफरल इकाई के रूप में नामित किया गया है। आपातकालीन प्रसूति देखभाल प्रदान करने के लिए प्रत्येक सीएचसी 2.40 लाख से अधिक लोगो को सेवा प्रदान करती हैं और प्रत्येक एफआरयू द्वारा 6,50,000 से अधिक जनसंख्या को सेवा दी जाती है।उत्तर प्रदेश सरकार ने एफआरयू को सक्रिय बनाने को लेकर विशेषज्ञों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कई कारगर कदम उठाये हैं जिसमे विशेषज्ञ कैडर का गठन, संविदा भर्ती, विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाने के लिए पीजी सीटों को वरीयता दी जाएगी व निजी विशेषज्ञों के ऑन-कॉल उपलब्ध कराया जाना |

सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) के अनुसार 2016 और 2030 के बीच वैश्विक एमएमआरको घटाकर 70 प्रति 100,000 से कम करने कालक्ष्यहै। एसडीजी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत मे उत्तर प्रदेश के एमएमआरको बहुत और तेज़ी से कम करने की आवश्यकता है। वर्तमान में यूपी का एमएमआर 201 प्रति 100,000 जीवित जन्मों का है, जबकि राष्ट्रीय औसत 130 प्रति 100,000 जीवित जन्मों का है।

एक दशक में यूपी में संस्थागत प्रसव 20.6% [NFHS-3 (2005-06)] से बढ़कर 67.8% [NFHS-4 (2015-16)] हो गया। इसी अवधि के दौरान, सार्वजनिक सुविधा केन्द्रों में संस्थागत प्रसव भी 6.6% से बढ़कर 44.5% हो गए हैं ।हालाँकि, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में किए गए सीज़ेरियन प्रसव का प्रतिशत इस अवधि के दौरान 11.1% से घटकर 4.7% हो गया। यह दिखाता है कि गर्भवती महिलाएं आशा / एएनएम और अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओ के सहयोग सेप्रसव सुविधा के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रो पर आईं, कुछ गर्भवती महिलाओं को प्रसव प्रक्रिया के दौरान आवश्यक आपातकालीन देखभाल की सुविधा ठीक से प्राप्त न हो सकी। इसके चलते या तो गर्भवती महिला को आपातकालीन देखभाल और सी सेक्शन (31.3%) के लिए निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ा या उन महिलाओं कोआपातकालीन देखभाल की सुविधा प्राप्त ही नहीं हो सकी। इन्हीं जटिलताओं को दूर करने के लिए ब्लाक स्तर पर फर्स्ट रेफरल यूनिट्स का सक्रिय होना अतिआवश्यक है ताकि प्रसव के दौरान किसी भी जटिलताओं का उपचार कर मां और शिशु की जान बचाई जा सके.

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