80 फीसदी दुर्लभ बीमारियां अनुवांशिक
लखनऊ। लगभग छह हजार तरह की दुर्लभ बीमारियां हैं। 10 व 30 हजार में से एक को दुर्लभ बीमारी होती है। सभी बीमारियों को इलाज उपलब्ध नहीं है। 80 फीसदी दुर्लभ रोग (रेयर डिजीज) अनुवांशिक होते हैं। बाकी बैक्टीरिया या वायरल संक्रमण समेत दूसरे कारण होते हैं। अनुवांशिक दुर्लभ बीमारियां जन्मजात होती हैं। यह जानकारी संजय गांधी पीजीआई में बुधवार को दुर्लभ रोग पर आयोजित कार्यशाला में संस्थान के मेडिकल जनेटिक्स विभाग की प्रमुख डॉ. शुभा फड़के ने प्रदेश भर से आए मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पतालों के बाल रोग विशेषज्ञ व प्रचार्यों को दी। उन्होंने बताया कि दुर्लभ रोगों के लक्षण तीन, छह और एक साल में दिखाई देने लगते हैं।
पीजीआई निदेशक डॉ. आरके धीमान ने कार्यशाला का उदघाटन किया। उन्होंने बताया कि इन बीमारियों का इलाज बहुत महंगा होने की वजह से केन्द्र सरकार ने 2021 में रेयर डिजीज पॉलिसी बनायी थी। इसी के तहत पीजीआई में दुर्लभ रोगियों का नि:शुल्क उपचार किया जा रहा है। केन्द्र सरकार आर्थिक मदद मुहैया करा रही है। डॉ. फड़के ने बताया संस्थान की ओपीडी में हर साल करीब तीन हजार बच्चे दुर्लभ रोग वाले आते हैं।
इनमें 150 बच्चों का इलाज चल रहा है। दुर्लभ रोगों गॉशर, फैब्री, एमपीएस और स्पाइनल मस्कुलर आदि रोगों की पहचान अहम होती है। डब्लूएचओ से आए डॉ. आस्था और डॉ. अभिषेक ने बाल रोग विशेषज्ञों को दुर्लभ बीमारियों की पहचान और उसके लक्षण बताए। प्रदेश की रेयर डिजीज की नोडल डॉ. शालिनी गुप्ता ने पॉलिसी से जुड़ी जानकारी साझा की। उन्होंने डॉक्टरों को बताया कि दुर्लभ बीमारी के लक्षण पता चलते ही ऐसे बच्चों को पीजीआई रेफर करें। कार्यशाला में 100 डॉक्टरों ने हिस्सा लिया।