लखनऊ। टीबी बीमारी पर नियंत्रण और इससे होने वाली मौत के आंकड़ों में कमी लाने के लिए अब रणनीति में परिवर्तन की आवश्यकता है, क्योंकि अभी भी समय पर जांच व पूरा इलाज कराने वाले तीन प्रतिशत टीबी मरीजों की मौत हो रही हैं। इसकी बड़ा कारण टीबी के बैक्टीरिया के टाइप की सटीक जांच न होना है। टीबी के बैक्टीरिया किस टाइप में बदल गया है। इसके लिए जीन एक्सपर्ट जांच आवश्यक है। यह प्रस्ताव केजीएमयू माइक्रोबायोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. अमिता जैन ने दिया।
केजीएमयू के अटल बिहारी वाजपेई सांइटिफिक कन्वेंशन सेंटर बृहस्पतिवार को माइक्रोकॉन-2023 शुरू हो गया। 46 वीं वार्षिक कान्फ्रेंस ऑफ इंडियन एसोसिएशन ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट में विशेषज्ञों ने वायरस, बैक्टीरिया व फंगस संक्रमण के अलावा नयी बीमारियों पर अपडेट कर रहे है।
डॉ. अमिता जैन ने कहा कि टीबी को समाप्त करने के लिए प्रिसीजन मेडिसिन की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि काफी हद तक प्रोटोकॉल के तहत इलाज कराने वाले मरीजों की मौतों के नियंत्रण में सहायता मिल सकती है। उन्होंने कहा कि जीन एक्सपर्ट टेस्ट जरूरी है। जेनेटिक्स टेस्टिंग बलगम, रीढ़ की हड्डी व सीरम आदि से की जा सकती है। खास बात यह है कि टीबी की पहचान के लिए माइक्रोस्कोप व कल्चर से जांच की जा रही है। इसमें चार से पांच हफ्ते लगते थे। अब जीन एक्सपर्ट जांच रिपोर्ट चार से पांच घंटे में आ रही है।
माइक्रोबायोलॉजी विभाग की वरिष्ठ डॉ. शीतल वर्मा ने कहा कि प्रत्येक मरीज की बायोलॉजी अलग होती है, लिहाजा जीन एक्सपर्ट से जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही मरीज की उम्र, लंबाई और वजन को भी इलाज में ध्यान रखना चाहिए। इससे लाइन ऑफ ट्रीटमेंट में मदद मिलती है। टीबी के इलाज में आरटीपीसीआर जांच भी अहम है। उन्होंने कहा कि इलाज के बावजूद यदि टीबी मरीज सही नहीं हो रहा है तो विशेषज्ञ के परामर्श पर कुछ और जांच भी कराई जा सकती है। इसके तहत दवा मरीज ब्लड सीरम में कितनी घुल रही है। दवा का प्रभाव उसके दुष्प्रभाव का भी पता लगाया जा सकता है।