इस तकनीक से घुटना बदलें, नहीं होती परेशानी

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लखनऊ। वर्तमान परिवेश में घुटना प्रत्यारोपण करने में हाई फ्लैश टेक्नालॉजी बेहतर साबित हो रही है। इस तकनीक में दिनचर्या का काम आसानी से किया जा सकता है। यह जानकारी किं ग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के आर्थोपैडिक विभाग द्वारा पहले कैडेबर नी रिप्लेंशमेंट कोर्स पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में डा. शैलेद्र सिंह ने दी। होटल क्लार्कअवध में आयोजित कार्यशाला में घुटना प्रत्यारोपण की नयी तकनीक की जानकारी विशेषज्ञों ने दी। दूसरे दिन कैडबर पर डाक्टर प्रत्यारोपण करने का अभ्यास करेंगे।

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डा. शैलेद्र ने बताया कि घुटना प्रत्यारोपण कराने में अभी लोगों में भ्रम की स्थिति बनी रहती है, जब कि नयी तकनीक हाई फ्लैश टेक्नालॉजी में घुटना प्रत्यारोपण के बाद आसानी दैनिकचर्या को आसानी से कर सकता है। इस तकनीक में नये कोबाल्ट क्रोम की धातु का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि घुटना को मोड़ने में कोई परेशानी नहीं होती है। डा. शैलेद्र ने बताया कि अक्सर लोग घुटना प्रत्यारोपण का निर्णय बहुत देर से लेते है। इस लिए प्रत्यारोपण के बाद दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि अगर दवा खाने के बाद भी दर्द बना रहे, अंदर से हड्ढी चटखने की आवाज आये तो विशेषज्ञ से जांच क रानी चाहिए। उन्होंने बताया कि घुटना प्रत्यारोपण से बचने के लिए जीवन शैली में बदलाव लाना चाहिए। इसके व्यायाम करना चाहिए, सतुलिंत आहार का सेवन करते हुए वजन को नियत्रिंत रखना चाहिए।

पीजीआई रोहतक से आये डा. राकेश गुप्ता ने बताया कि एक्सीडेंट या अन्य कारणों से पैर की बनावट में गड़बड़ी हो जाए आैर उसके साथ उसके गठिया नामक बीमारी हो जाए तो उसके घुटना प्रत्यारोपण में काफी दिक्कतों का सामना करना बढ़ता है। केजीएमयू के आर्थोपैडिक विभाग के वरिष्ठ डा. आशीष कुमार ने बताया कि घुटना प्रत्यारोपण में घुटना प्रत्यारोपण टेंडन को एक दूसरे के मिलना करना आवश्यक हो जाता है। कार्यशाला में घुटनाकूल्हा प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डा. संजय श्रीवास्तव ने बताया कि प्रत्यारोपण में घुटने के अास-पास मांसपेशियों पर क्या प्रभाव पड़ता है। आर्थोप्लास्टी व स्पोर्टस इंजरी विशेषज्ञ डा. आशीष कुमार ने घुटना प्रत्यारोपण के दौरान किन- किन बातों का विशेष ध्यान रखा जाए। यह जानकारी दी। विशेषरुप से डा. संदीप गुप्ता,डा. यूके जैन, डा. नरेद्र कुशवाहा संिहत अन्य डाक्टर भी मौजूद है।

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