लखनऊ। यदि किसी को दो सप्ताह से ज्यादा बुखार आ रहा हो। इसके साथ ही वजन में भी गिर रहा हो, तो ऐसे में ब्रोन टीबी हो सकती हैं। समय से इसका इलाज न होने से पीड़ित मरीज की आंख की रोशनी भी जा सकती है। यह जानकारी पीजीआई चंडीगढ़ के न्यूरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डा.विवेक लाल ने शनिवार को केजीएमयू स्थित साइंटिफिक कंवेंशन सेंंटर में आयोजित ट्रापीकान -2017 में दी। कार्यशाला में न्यूरोलॉजिस्टों ने टीबी के अलावा अन्य न्यूरोलॉजी सम्बधी बीमारी पर जानकारी दी।
डा. लाल ने बताया कि दिमाग की टीबी से ग्रसित लोगों में से 30 प्रतिशत मरीजों को तब इसकी जानकारी होती है,जबतक आंखों की रोशनी चाली जाती है। एक बार आंखों की रोशनी जाने के बाद आंखों की रोशनी नहीं आ सकती है। उन्होंने बताया कि दिमाग की टीबी चूंकी नसों को खराब करती है, जिससे कार्निया प्रत्यारोपण कराने के बाद भी रोशनी नहीं लायी जा सकती है। उन्होंने बताया कि यदि किसी को फेफड़े की टीबी हो, तो उसे सावधान रहना चाहिए तथा अपना पूरा इलाज कराना चाहिए। नहीं तो यदि टीबी का दूसरा अटैक सीधे दिमाग पर ही होता है।
दिमाग की टीबी में मरीज को लगभग डेढ़ साल तक दवाओं का सेवन करना पड़ता है। दिमाग की टीबी को सीएनएस ट्यूबरकुलोसिस भी कहा जाता है। कार्यक्रम में एम्स न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डा. कामेश्वर प्रसाद ने बताया कि अगर प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाए, तो शरीर में मौजूद ट¬ूबरकोलिसिस के बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते है। उन्होंने बताया कि टीबी के इलाज में अभी शोध की आवश्यकता है। सभी शोध संस्थानों को मिल कर काम करना होगा। टीबी के लाइन आफ ट्रीटमेंट की दवाओं में कुछ कमी महसूस की जाती है।
कार्यक्रम के आयोजक सचिव व केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर नीरज कुमार ने कहा कि उष्कटिबंधीय क्षेत्रों में संक्रमण सें सम्बंधीत न्यूरोलॉजीकल समस्याएं दस वर्षो में काफी बढ़ गई है। सम्मेलन में केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. राजेश कुमार वर्मा द्वारा डेंगू पर व्याख्यान दिया गया। उन्होने बताया कि डेंगू बीमारी से कई प्रकार की न्यूरोलॉजिकल समस्याएं होती है। यह बीमारी भारत के साथ साथ आस पास के देशों में भी बढ़ रही है। भारत में दो से पांच प्रतिशत आबादी प्रतिवर्ष डेंगू से ग्रसित होती है। यह बीमारी पूरे विश्व में धीरे-धीरे बढ़ रही है। इससे सबसे पहले ब्रोन और स्पाइनल कार्ड प्रभावित होता है।
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