लखनऊ। एक्सीडेंट या किसी अन्य कारण से चेहरे की विकृति को कृत्रिम तकनीक से दूर करने में किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के डेंटल यूनिट का प्रोस्थोडॉन्टिक विभाग प्रदेश में नया आयाम स्थापित कर रहा है। कृत्रिम आंख, नाक , कान के अलावा सिर की हड्डी को बनाने में सफलता पायी है। यहां की कृत्रिम आंख ,नाक व कान को नकली समझने में चूक कर जाते है आैर मरीज सामाजिक स्तर पर हतोत्सांिहत नहीं होता है। यह बात प्रोस्थोडॉन्टिक विभाग के प्रमुख व भारतीय प्रोस्थोडॉन्टिक सोसायटी के आयोजन सचिव प्रो. पूरन चंद ने भारतीय प्रोस्थोडॉन्टिक सोसायटी सम्मेलन में प्री-कॉन्फ्रेंस कोर्स का आयोजन में दी।
सम्मेलन में डॉ तीरथवज श्रीथिवाज, महिदोल विश्वविद्यालय, थाईलैंड और डॉ सुनीत, डॉ रघुवर और डॉ बालेंद्र और डॉ नीती सहित केजीएमयू की टीम ने कृत्रिम आंखों के निर्माण की तकनीक की नयी जानकारी अपडेट की। इसके बाद आयोजन सचिव प्रो. पूरन चंद ने अन्य चेहरे के कृत्रिम अंग के बारे में डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया। उन्होंने बताया गया कि कृत्रिम आंख के संदर्भ में सर्जन को क्या निर्देश दिए जाने चाहिए, ताकि ऑपरेशन के बाद उन मरीजों को अच्छी कृत्रिम आंख लगायी जा सके, जिनकी आंख दुर्घटना, कैंसर आदि के कारण चली गई है।
उन्होंने बताया कि आंखों की बीमारी रेटिनोब्लास्टोमा का कारण आंख चली जाती है। इसके स्थान पर कृत्रिम अांख लगाकर चेहरे को एक बार देखने लायक बना दिया जाता है। अक्सर लोग एक बार देख भाप नहीं पाते है कि मरीज के कृत्रिम आंख लगी है।
केजीएमयू कुलपति ले जन डॉ.बिपिन पुरी शनिवार को औपचारिक रूप से सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे। आयोजन अध्यक्ष प्रो. स्वतंत्र अग्रवाल ने कहा कि जनता को जागरूक किया जाना चाहिए कि कृत्रिम आंख, कान, उंगलियों को प्राकृतिक त्वचा के समान दिखने वाली सामग्री से बनाया जा सकता है।
एम्स, नई दिल्ली की प्रो. वीना जैन ने डॉक्टरों को सभी दांतों के खराब या छोटे होने या बीमारी के कारण टूटने आदि के बारे में प्रशिक्षित किया। डॉ. स्वाति गुप्ता ने डॉक्टरों को कृत्रिम दांत देने के बारे में प्रशिक्षित किया जो डिजिटल स्कैनर का उपयोग करके पर्याप्त कठोरता के साथ अधिक प्राकृतिक दिखता है।