लखनऊ। संजय गांधी पी जी आई में आयोजित इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के 54 वें इंटरनेशनल अधिवेशन के समापन अवसर पर विस्तृत चर्चा में संस्थान के नेफ्रोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि किडनी खराब होने पर शरीर में नमक और पानी जमा होने लगता है। इसके साथ ही हार्मोनल असंतुलन और रक्त नलिकाओं पर बढ़ा दबाव ब्लड प्रेशर को लगातार ऊंचा बनाए रखता है। लंबे समय तक अनियंत्रित रक्तचाप दिल, दिमाग और किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।
विशेषज्ञों ने बताया कि एसजीएलटी-2 इनहिबिटर वर्ग की दवाएं, जो मूल रूप से डायबिटीज के मरीजों के लिए बनाई गई थीं, अब किडनी और ब्लड प्रेशर दोनों के लिए फायदेमंद मानी जा रही हैं। डापाग्लिफ्लोजिन, एम्पाग्लिफ्लोज़िन और कैनाग्लिफ्लोजिन जैसी दवाएं पेशाब के जरिए अतिरिक्त शुगर और नमक को बाहर निकालती हैं। इससे ब्लड प्रेशर घटता है और किडनी पर दबाव कम होता है।
इसके अलावा मिनरलोकोर्टिकोइड रिसेप्टर एंटागोनिस्ट की नई दवाएं, जैसे फाइनेरेनोन, किडनी में सूजन और फाइब्रोसिस को कम कर लंबे समय तक सुरक्षा प्रदान करती हैं। कुछ चुने हुए मरीजों में एआरएनआइ वर्ग की दवाएं भी बीपी नियंत्रित कर रहीं हैं। डायबिटीज की जल्द पहचान और उपचार के असरदार उपाय, पहचानें प्रमुख लक्षण और शुरुआती संकेत बीपी-डायबिटीज के मरीजों की मॉनिटरिंग और डायबिटीज से आंखों की रोशनी को बड़ा खतरा, हर 14 डायबिटिक में से एक डीएमई का शिकार, रेटिना की जांच कराना चाहिएं। चरणबद्ध तरीके से तय किया जाता है इलाज पहले पारंपरिक ब्लड प्रेशर की दवाएं दी जाती हैं, फिर डाइयूरेटिक्स और हार्मोन पर असर करने वाली दवाएं जोड़ी जाती हैं।
यदि इसके बावजूद भी रक्तचाप नियंत्रित न हो, तो डायबिटीज से जुड़ी नई पीढ़ी की दवाओं को इलाज में शामिल किया जाता है। यदि दवाओं से भी लाभ न मिले तो रीनल डिनर्वेशन जैसी आधुनिक तकनीक एक कारगर विकल्प के रूप में सामने आयी है। यह कम चीरा लगाने वाली प्रक्रिया है, जिसमें किडनी से जुड़ी अत्यधिक सक्रिय तंत्रिकाओं को शांत किया जाता है। इससे लंबे समय तक ब्लड प्रेशर में कमी देखी गई है और कई मरीजों में दवाओं की संख्या भी कम हो सकी है।











