लखनऊ। छोटी आंत में अगर ब्लीडिंग हो रही हो आैर उसका पता नहीं चल पा रहा हो, तो एक छोटा सा विशेष कैप्सूल निगलने के बाद शरीर के अंदर जाकर छोटी आंत में ब्लीडिंग व उसके कारणों की फोटो खींच कर भेज देता है। इससे इलाज आसान हो जाता है। यह जानकारी पीजीआई के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के वरिष्ठ डा.अशोक कुमार ने किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जिकल अपडेट में दूसरे दिन जानकारी दी। इनके अलावा दिल्ली से आये बैरियाट्रिक विशेषज्ञों ने मोटापे की सर्जरी के अलावा अन्य सर्जरी के बारे में जानकारी दी।
डा. अशोक ने बताया कि अक्सर छोटी आंत में हो रही ब्लीडिंग की सटीक जानकारी नही मिल पाती है। सामान्य जांच में कारण नहीं पता चलने पर स्मॉल बावेलइडोस्कोपी तकनीक का सहारा लिया जाता है। इसमें एक विशेष प्रकार का कैप्सूल जिसमें बैटरी, कैमरा तथा डायोड भी लगा रहता है। मरीज को निगलने के लिए दे दिया जाता है। यह कैप्सूज निगलने के बाद पेट, बड़ी आंत से होता हुआ, छोटी आंत में पहुंचता है, अंदर पहुंच कर वह दो सेकेंड में फोटो खींचता रहता है आैर फोटो को कमर में बंधे इमेज रिकार्डर में भेजता रहता है। यह लगभग 50 हजार इमेज को भेज सकता है। इसके बाद यह लैट्रीन के रास्ते बाहर निकल जाता है। इसके बाद रिकार्डर की इमेज को देख कर पता किया जाता है कि कहां पर ब्लीडिंग हो रही है या कोई आैर कारण है।
उन्होंने बताया कि यह कैप्सूल उल्टी- दस्त के मरीज के अलावा ब्लीडिंग व सिकुड़न वाले मरीज को नहीं दिया जाता है। उन्होंने बड़ी आंत में भी ब्लीडिंग के कारणों को सीटी एंजियोग्राफी तकनीक से पता किया जाता है। अक्सर इसी दौरान हल्की फुल्की ब्लीडिंग को उसी वक्त बंद कर दिया जाता है। इसके अलावा कोलोनोस्कोपी तकनीक भी कारगर है। मैक्स अस्पताल दिल्ली के डा.मनीष बैषल ने बताया कि बैरियाट्रिक सर्जरी मोटापा ग्रस्त एमआई बीएमआई 35 के बाद के लोगों में की जाती है। इनमें एक तकनीक में छोटी आंत को बाई पास कर दिया जाता है। पेट को भी छोटा कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि इस सर्जरी कराने के बाद 100 में से 85 प्रतिशत लोगों को डायबटीज समाप्त हो जाता है। गोष्ठी में पैक्रियाज कैंसर,आमाशय की थैली की नयी तकनीक की सर्जरी की जानकारी दी।
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