सुई की नोक बराबर टुकड़े से पहचान होगी कैंसर की

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लखनऊ। फेफड़े में कैंसर कोशिकाओं की पहचान करने का दावा किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ डाक्टरों ने किया है। पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन तथा सेंटर फार एडवांस रिसर्च के विशेषज्ञों की टीम ने एमआईआरएनए (माइक्रो राइबो न्यूक्लिक एसिड) की पहचान कर ली है, जो लंग कैंसर की कोशिकाओं में मौजूद होते हैं। इनका एक निडिल की नोंक के बराबर का टुकड़ा लेकर टाइप ऑफ कैंसर और उसके स्टेज की जानकारी पता की जा सकती है।

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केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. वेद प्रकाश के साथ सेंटर फार एडवांस रिसर्च के डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह और डॉ. अंजना सिंह की टीम ने मॉलीक्यूलर डायग्नोसिस के जरिए सीटी गाइडेड बायोप्सी से कैंसर कोशिकाओं की खोज करने का दावा किया है। डॉ. वेद का कहना है कि फेफड़ों में होने वाले कैंसर की जांच के लिए बड़ा टुकड़ा निकालना पड़ता था। उन्होंने बताया कि अगर सही जानकारी नहीं मिली तो फिर सर्जरी करके टुकड़ा निकालना पड़ता था। इससे मरीज को भी कई दिक्कतें हो जाती थीं। यह जांच हिस्ट्रोपैथोलॉजी तकनीक से होती थी। उन्होंने बताया कि अब इसके साथ मॉलीक्यूलर जांच के जरिए सटीक बताया जा सकता है कि कैंसर है या नहीं।

उन्होंने बताया कि तीन प्रकार के एमआई आरएनए ऐसे हैं जो फेफड़े के कैंसर की कोशिकाओं में शोध के दौरान देखने को मिले। इससे इस बात की पुष्टि होगी कि जिन मरीजों यह हैं, उनकी बीमारी शुरूआती दौर में है। वहीं दो आरएनए ऐसे हैं, जिनमें से एक सिर्फ स्क्वैमस और दूसरा सिर्फ एडिनो कार्सिनोमा में ही पाया जा सकता है। इससे टाइप ऑफ कैंसर का पता चल जाता है। इसके बाद मरीज का लाइन आफ ट्रीटमेंट शुरु हो जाता है।

फेफड़े के कैंसर वाले मरीजों के लिए यह जांच बेहद सटीक है। इस जांच में एक ही बार में सही जानकारी मिल सकती है।
डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि इस शोध के दौरान 75 फीसदी मरीजों में एडिनो कार्सिनोमा मिला है, जबकि अभी तक स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा ज्यादा पाया जाता था। यह तंबाकू और धूम्रपान की वजह से होता है।

कम उम्र के लोगों को भी हो रहा कैंसर

अगर आंकड़ों को देखा जाए तो कम उम्र युवकों में विभिन्न प्रकार के कैंसर मिल रहे है। यह एक खतरनाक संकेत है। इसके लिए दैनिक दिनचर्या व आहार व्यवहार करना होगा। अगर कैंसर के लक्षण दिखते है तो तुरंत विशेषज्ञ डाक्टर से परामर्श लेकर इलाज करना चाहिए। डॉ. वेद ने बताया कि जो कैंसर पहले 50 साल की उम्र के बाद होते थे, वह अब 27 वर्ष के लोगों को भी होने लगा हैं, जबकि वे किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे तीन कैंसर के मरीज आये है। इनकी उम्र 27, 29 और 32 वर्ष की हैं। यह किसी प्रकार का नशा भी नहीं करते हैं और पारिवारिक हिस्ट्री भी कैंसर की नहीं है। इनका इलाज करने के साथ ही इसके कारणों की जांच की जा रही है।

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