लखनऊ । किंग जार्ज चिकित्सालय विश्वविद्यालय के आर्थोपैडिक विभाग के वरिष्ठ डा. अजय सिंह की स्टेम सेल इफ्यूजर इन फीमर तकनीक ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना ली है। इस तकनीक से डा. अजय ने अहमदाबाद के मरीज की सर्जरी सफलता पूर्वक की है। मुम्बई के बाद काफी संख्या में विभिन्न राज्यों के मरीजों ने इस तकनीक से सर्जरी कराने के लिए केजीएमयू से सम्पर्क साधा है।
केजीएमयू में स्टेम सेल इफ्यूजर इन फीमर तकनीक का प्रयोग किया जाता है
डा. अजय सिंंह ने बताया कि आम तौर पर कूल्हे का फीमरहेड (गोला) धीरे- धीरे काम करना बंद कर देता है, इसके कारण मरीज चलने फिरने में दिक्कत महसूस करता है। ऐसे में ज्यादातर विशेषज्ञ कूल्हा प्रत्यारोपण करने का ही परामर्श देते है, पर केजीएमयू में स्टेम सेल इफ्यूजन इन फीमर तकनीक का प्रयोग किया जाता है। डा. अजय ने बताया कि अहमदाबाद से 36 वर्षीय युवक ने उनसे इस तकनीक से सर्जरी करने के लिए सम्पर्क साधा। युवक पहले मुम्बई तक कूल्हे की फीमर हेड का इलाज कराने के लिए चक्कर लगा डाला था। उन्होंने बताया कि जांच के बाद उन्होंने पाया कि मरीज के फीमर हेड का काफी आंतरिक भाग सूख चुका था।
इस तकनीक से सर्जरी करने में लगभग 60 हजार का खर्च आता है
डा. अजय ने बताया कि उन्होंने मरीज के बोनमेरो से 120 एमएल ब्लड को अमरीका की विशेष उपकरण से 10 एमएल स्टेम सेल बनवाया। इसके बाद इमेज इंटेसिव फायर तकनीक से मरीज के फीमर हेड के सूखे वाले भाग में चार एमएम के छेद से स्टेम सेल को पहुंचाया। आंतरिक हड्डी के क्षेत्र में स्टेम सेल ने क्रियाशील होते ही नयी कोशिकाओं व वाहिकाओं को बनाया। सर्जरी के तीसरे दिन ही मरीज उठना बैठना शुरू कर दिया। करीब एक हफ्ते में मरीज ने चलना फिरना भी शुरू कर दिया। इस तकनीक से मरीज को बहुत कम ही ब्लड लॉस हुआ आैर मरीज बेहतर है। उन्होंने बताया कि इस तकनीक से सर्जरी करने में लगभग 60 हजार का खर्च आता है। जबकि एक कूल्हा प्रत्यारोपण में एक से दो लाख रुपये का खर्च आता है। उन्होंने बताया कि अब दिल्ली के मरीज ने भी इस तकनीक से सर्जरी करने के लिए उनसे सम्पर्क साधा है।