मोटापा, बीपी और डायबिटीज में यह बीमारी हो सकती है गर्भवती को

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लखनऊ। गर्भवती महिलाओं में मोटापे, उच्चरक्तचाप, मधुमेह अक्सर प्लेसेंटा में खराबी आ जाती है। इन सबके कारण गर्भस्थ शिशु को पोषण नहीं मिल पाता है। इस कारण डिलीवरी में ब्लीडिंग हो जाती है। इसको पोस्ट पार्टम हेमरेज (पीपीएच) कहते हैं। इस दौरान सटीक इलाज मिलने पर प्रसूता की मौत तक हो जाती है। अगर देखा जाए तो मातृ मृत्युदर का सबसे बड़ा कारण पीपीएच है। यह बात मुंबई की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ.सुचित्रा पंडित ने शनिवार को लखनऊ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनोकोलॉजी सोसाइटी (लॉग्सी) में दी। जस्टोसिस विषय पर कार्यशाला कंवेंशन सेंटर में आयोजित की गयी थी आैर उद्घाटन डॉ.राम मनोहर लोहिया संस्थान के निदेशक डॉ.एके त्रिपाठी ने किया।

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उन्होंने बताया कि हाई ब्लड प्रेशर की जानकारी अक्सर महिलाओं को नहीं होती है। क्योंकि उनका ब्लड प्रेशर को चेकअप नहीं होता है। इसके कारण उन्हें प्री इक्लेम्शिया बीमारी हो जाती है। ब्लड प्रेशर को नियंत्रित नहीं रहने के कारण बच्चे की विकास तक रूक सकता है। यही नहीं समय पर जांच न होने के कारण प्रसव के समय मरीज को झटके आने लगे, तो जच्चा-बच्चा दोनों की जान हो सकता है। इसके लिए विशेषज्ञ के परामर्श से ब्लड प्रेशर की दवा का लगातार सेवन करना चाहिए।

केजीएमयू की विशेषज्ञ डॉ.पुष्पलता शंखवार ने बताया कि कई बार गर्भवती बेहद गंभीर हालत में पहुंचती है। ऐसे में पंप एंड प्रेशर तकनीक काफी महत्वपूर्ण है। इसमें हमें मरीज को तुरंत ट्यूब, आइवी फ्ल्यूड, ऑक्सीजन से लेकर मॉनिटर भी लगाने पड़ते हैं। वहीं इमरजेंसी में ऑपरेट करने की व्यवस्था भी करनी पड़ती है। महिलाओं में एक्टोपिक प्रेग्नेंसी, रेप्चर्ड यूट्रस, आब्सटे्रक्टिव लेबर आदि इस तरह की गंभीर समस्याएं हैं, जिनकी पुष्टि होने पर मरीज को तत्काल इलाज की जरूरत पड़ती है।

केजीएमयू के स्त्री रोग विभाग की प्रो.उर्मिला सिंह का कहना है कि पोस्ट पार्टम हेमरेज से बचने के लिए क्वीनमेरी अस्पताल में बैलून टैम्पोनाड तकनीक इजाद की है। इस तकनीक में एक बैलून को आइवी फ्ल्यूड से जोड़ दिया जाता है, जिसे यूट्रस में डालकर फ्ल्यूड भर दिया जाता है। जिससे यूट्रस की वाल में दबाव पड़ता है और ब्लीडिंग़ रूक जाती है। इसके अलावा कम्प्रेशन सूचर तकनीक भी है। वहीं कई बार ब्लीडिंग होने पर मरीज शॉक में चला जाता है। ऐसे में उसे न्यूमेटिक एंटी शॉक गारमेंट में लपेटा जाता है। यह अधिकतर अस्पताल में मौजूद होता है जिससे ब्लड सेट्रालाइज होकर हार्ट, लिवर और किडनी में जाता है। जिससे मरीज किडनी फेलीयर से बच जाता है।

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