लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पल्मोनरी एडं रेस्पेरेट्री मेडिसिन, ट्रामा सर्जरी विभाग तथा प्लास्टिक सर्जरी के विशेषज्ञों ने संयुक्त रूप से 20 वर्षीय युवती की मांझे से कटी गर्दन को जोड़ दिया। गर्दन की रक्तवाहिकाओं के साथ आहारनाल भी कट गयी थी, जिसे जटिल सर्जरी करके जोड़ा गया। मांझे से कटने के कारण युवती की हालत गंभीर बनी थी। इस लिए उसे आठ दिनों तक वेंटीलेटर पर रखना पड़ा। इसके बाद उसकी हालत ठीक होने पर उसे डिस्चार्ज कर दिया गया है।
बालागंज निवासी सुरभि (20) बीते 25 दिसम्बर को एमएसटी बनवाने ऐशबाग से चारबाग जा रही थी। स्कूटी पर उसके बर्लिंगटन चौराहे के पास अचानक एक पतंग का मांझा गला को रेत गया। सुरभि अपनी स्कूटी को संभाल पाती इतनी देर में मांझे से कटने उनके गले से खून की धार बहने लगी। हिम्मती सुरभि ने वहां गुजर रहे लोगों से मदद की। परन्तु किसी के ध्यान देने पर उसकी मदद एक मेट्रो कर्मचारी आगे आया। उसने सिविल अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें जांच के बाद हालत गंभीर देखते हुए केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर रेफर कर दिया। ट्रामा सेंटर पहुंचने पर ट्रामा सर्जरी विभाग के डा. अनिता व डा. यदुवेंद्र ने तत्काल सर्जरी करने का निर्णय लिया। इसमें उनकी मदद प्लास्यिक सर्जरी के डाक्टरों ने भी की।
सुरभि को नया जीवन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ट्रॉमा सेंटर के रेस्पेरेट्री इंसेंटिव केयर यूनिट के प्रभारी डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि मांझे से गर्दन कटने के कारण सुरभि की सांस की नली व खाने की नली भी कटी थी, उसके बाद जब तीन दिनों बाद सुरभि को सांस लेने में परेशानी होने लगी तो उसे 28 दिसम्बर को रेस्पेरेट्री इंसेंटिव केयर यूनिट में रेफर किया गया। डॉ. वेद ने बताया कि क्योंकि सुरभि की सांस की नली ट्रेकिया व खाने की नली इसोफेगस दोनों कट गई थी इसलिए खाने की नली का सारा सामान व सांस की नली से बहने वाला खून दोनों चीजें फेफड़े में चला गया था, इस कारण उसे सांस लेने में काफी परेशानी होने लगी थी, साथ ही दोनों नलियों के कटने से बहने वाला खून भी सांस की नली व फेफड़ों में थक्का जमा रहा था, जिसके कारण सुरभि के गले से सांस की नली डालकर उसे वेंटीलेटर से कृत्रिम सांस दी जाने लगी और इसी बीच उसकी तीन बार ब्राांकोस्कोपी की गई, जिसमें गले की ट्यूब से दूरबीन डालकर उसके फेफड़ों की सफाई की गई और खून के थक्कों को निकाला गया।
इसके बाद सुरभि को 4 जनवरी तक वेंटीलेटर पर रखा गया। डॉ. वेद ने बताया कि सुरभि को गला बहूत ही बुरी तरह कटा था जिसमें गले से मस्तिष्क को ब्लड सप्लाई करने वाली नस बाल-बाल बच गई थी। सुरभि का इलाज करने वाले डॉ. वेद ने बताया कि मांझे को बनाने में शीशे का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। यही नही चाइनीज मांझा भी रोक के बाद भी चल रहा है। बीते एक वर्ष में मांझे से कटने के बाद गंभीर अवस्था व इलाज के लिए लाया गया यह पांचवां मामला है।
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