हरित पटाखे भी आ गये, लाइसेंस प्रक्रिया भी शुरु

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न्यूज। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बारूद एवं पटाखों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिये हवा को कम दूषित करने वाले पर्यावरण हितैषी ‘ हरित पटाखे” विकसित किये हैं। पर्यावरण आैर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डा. हर्षवर्धन ने सोमवार को बताया कि वैज्ञानिक एवं आैद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) आैर राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (नीरी) सहित अन्य संगठनों ने पहली बार बारूद से होने वाले उत्सर्जन को मापने की प्रणाली विकसित करते हुये हरित पटाखे बनाये हैं। उन्होंने हालांकि स्वीकार किया ” एक सप्ताह बाद दीवाली को देखते हुये बाजार में पूरी तरह से हरित पटाखों की आमद सुनिश्चित करना व्यवहारिक नहीं हो पायेगा।””

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ई पटाखों के प्रयोग आैर बिक्री को अनिवार्य बनाने के सवाल पर डा. हर्षवर्धन ने कहा ”देश में लगभग छह हजार करोड़ रुपये के पटाखा उद्योग में पांच लाख से अधिक लोग कार्यरत हैं। ऐसे में इतने व्यापक पैमाने पर समूचे पटाखा उद्योग को नयी तकनीक से लैस करना व्यवहारिक नहीं है।”” उन्होंने बताया कि सीएसआईआर आैर नीरी सहित अन्य संस्थाओं ने तीन तरह के हरित पटाखे विकसित किये हैं। विभिन्न रासायनिक तत्वों की मौजूदगी आैर हानिकारक गैसों वाले धुंए के कम उत्सर्जन करने वाले इन पटाखों को ‘स्वास, सफल आैर स्टार” नाम दिया गया है।

इनके इस्तेमाल से हवा दूषित करने वाले पार्टिकुलेट तत्वों की मात्रा में 25 से 30 प्रतिशत आैर पोटेशियम तत्वों के उत्सर्जन में 50 से 60 प्रतिशत तक गिरावट आयेगी। उन्होंने बताया कि इनकी उत्पादन लागत भी 15 से 30 प्रतिशत तक कम है। साथ ही पटाखा उद्यमियों को इनके निर्माण के लिये अपनी आैद्योगिक इकाईयों में कोई तकनीकी बदलाव नहीं करना पड़ेगा।

डा. हर्षवर्धन ने बताया कि मंत्रालय की कोशिश बाजार में पारंपरिक पटाखों की जगह हरित पटाखों की आसान पहुंच सुनिश्चित करने के लिये पटाखा उत्पादकों के संगठन को इस तकनीक के बारे में सूचित कर दिया है। उन्होंने बताया कि पटाखा उत्पादक तेल एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पेसो) से हरित पटाखों के निर्माण का लाइसेंस हासिल कर सकेंगे।

डा. हर्षवर्धन ने कहा कि एक साल से भी कम समय में इस परियोजना को पूरा करने वाले वैज्ञानिकों ने ई पटाखों के प्रोटोटाइप भी प्रयोगशाला में तैयार कर लिये हैं। बैटरी चालित इन पटाखों से सिर्फ आवाज आैर रोशनी निकलती है। इनके निर्माण की तकनीकी भी जल्द उत्पादकों को हस्तांतरित कर दी जायेगी।

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