बेहतर सेक्स टॉनिक का काम करता है बबूल

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Photo Source: http://www.theayurveda.org/

इरेक्टाइल डिस्फन्क्शन यानी लिंग में पर्याप्त उत्तेजना न आना आज के ज़माने में कई पुरुषों की आम समस्या है. इसमें सम्भोग के दौरान एका एक लिंग सुस्त पड़ जाता है। कई पुरुष तो शीघ्र पतन का शिकार हो जाते हैं। ऐसे सभी लोगो को बबूल के इस परम प्रभावी प्रयोग को एक बार अवश्य आजमाना चाहिए बजाय किसी नीम हकीम के चक्कर में पड़ने के। प्रयोग काफी सरल है। इसके अन्तर्गत बबूल की सूखी फलियों को भली भांति पीसकर उनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को १ चम्मच भर मात्रा में रोज रात को सोने के १ घंटे पूर्व गर्म दूध के साथ लें। कुछ ही दिनों में पॉजिटिव परिणाम प्राप्त होगा।

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बबूल एक ऐसा वृक्ष है , जिसे आम तौर पर सभी जानते पहचानते हैं पर इसके क्या क्या प्रयोग किये जा सकते हैं, इसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। बबूल का पेड़ अमूमन हर गांव शहर में पाया जाता है। यह कांटेदार बड़े और छोटे वृक्ष के रूप में सारे देश के जंगलों, गांव के बाहर व सड़कों के किनारे पैदा होता है। इसके तीन प्रकार हैं – तेलिया बबूल, कोडिया बबूल और राम कांटा बबूल।

तेलिया बबूल माध्यम आकार का होता है। कोडिया बबूल का वृक्ष मोटा व रूखी छाल वाला होता है। यह ज्यादातर महाराष्ट्र में होता है। राम कांटा बबूल की शाखाएं ऊपर उठी हुई और झाड़ू की तरह होती है यह पंजाब , राजस्थान व दक्षिण भारत में पाया जाता है।

रासायनिक विश्लेषण :

बबूल की छाल में करीब १२ फ़ीसदी तथा फली में करीब २० फ़ीसदी टैनिन पाया जाता हैं। इसके गोंद में अरेबिक एसिड से निर्मित चूना तथा मैग्नीशियम के साल्ट होते हैं।

क्या कहता है आयुर्वेद ?

बबूल, रूखी छाल वाला कफ और पित्त की समस्याओं को दूर करने वाला तथा कोढ़, विष और कृमि नाशक भी है। इसका गोंद वात पित्त नाशक, मूत्र लाने वाला, गर्भाशय की सूजन को दूर करने वाला तथा पौष्टिक है।

इलाज में उपयोग:

सूखी खाँसी: बबूल के गोंद का टुकड़ा चूसने से खांसी और गले की खराश व सूजन में आराम मिलता है।

-बबूल के पत्ते, काला जीरा, सफेद जीरा, इन तीनों के समभाग लेकर पीस लें । 1 0 ग्राम की मात्रा में रात को लेने से आराम होगा।

मुंह के रोग: बबूल की छाल को साफ कर काढा तैयार कर, गरारे करने से मुंह के छाले, मसूड़ों के विकार, मसूडों से खून आना आदि रोग ठीक होते हैं। बबूल के दातून करने और गोंद के टुकड़े चूसने से भी यही लाभ होते हैं।

मूत्र विकार: पेशाब की रुकावट और जलन को ठीक करने के लिए बबूल की गोंद को पानी में घोलकर पीना चाहिये । बबूल की कच्ची फलियां छाया में सुखाकर देशी घी में तल ले। इन्हें शक्कर के साथ 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लेने से भी मूत्र सम्बन्धी रोग ठीक हो जाते हैं।

उत्तम टॉनिक : बबूल के गोंद को देसी घी में भूनकर यदि महिलाएं खाएं, तो उनकी कमजोरी दूर होती है; पुरुष खाएं तो उनका वीर्य बढ़ता है।

कमरदर्द : बबूल की गोंद, बाल और फलियां सम भाग लेकर कूट-पीसकर रख लें । एंक-एंक चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार लें। कमरदर्द में लाभकारी है।

जख्म : बबूल की पत्ती को पीसकर जख्म पर बांधने से जख्म भर जाता है। खून का बहना भी बंद हो जाता है।

हड्डी टूटना : बबूल की फलियों का चूर्ण एक-एंक चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार लें। कुछ दिनों के सेवन से हड्डी आसानी से जुड़ने लगती है।

मुंह के छाले : इस समस्या में बबूल की पत्तियां चबाएं तथा उनका रस छालों पर जीभ की सहायता से घुमाते रहें। इससे जलन होगी, पर छाले ठीक हो जाएंगे।

फाइब्रोसिस : बबूल क्री शाखाओं का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम कुछ दिनों तक कुल्ला, गरारा करने से फाइब्रोसिस की शुरूआती अवस्था में लाभ होता है।

खूनी दस्त : साधारण दस्त या खूनी दस्त होने पर बबूल की कोमल पत्तियों को बबूल के ही गोद के साथ बारीक पीस ले। इसमें पानी डालकर थोडी देर गलने दें और थोडी देर बाद मसलकर छान ले। इस मिश्रण को दो-दो घंटे बाद दो चम्मच लें। समस्या काबू में आने पर प्रयोग तुरंत बंद कर दें ।

दंत मंजन : बबूल की फलियों के छिलके, छाल व बीज और बादाम के छिलके को जलाकर बारीक पीसकर मंजन करने से दांतों के कई रोग दूर होते है । इस राख में धोड़ा-सा सेंधा नमक मिला लेने से और अधिक लाभ होता है ।

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